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आनन्द प्रवचन | छठा भाग
इस घोषणा के कारण प्रत्येक जाति के अभावग्रस्त व्यक्ति दल के दल आते जा रहे थे तथा युधिष्ठिर के द्वारा इच्छित दान लेकर लौट रहे थे । इस प्रकार शास्त्रोक्त रीति का पूर्णतया पालन करते हुए महायज्ञ सम्पन्न किया गया ।
किन्तु यज्ञ की समाप्ति के दिन एक बड़ी विस्मयजनक घटना हुई। वह इस प्रकार कि उस दिन अचानक एक बड़ा सा नेवला वहाँ आया । नेवले का शरीर अजीब दिखाई दे रहा था, क्योंकि उसका आधा शरीर सुनहरा था और आधा वैसा, जैसा कि साधारण नेवलों का होता है ।
__ वह नेवला यज्ञशाला के मध्य में आया और वहाँ उपस्थित असंख्य व्यक्तियों को देखकर जोर-जोर से हँसने लगा । उसे इस प्रकार मनुष्यों के समान हँसते देखकर उपस्थित जन-समुदाय चौंक उठा तथा लोग समझे कि कदाचित कोई भूत-पिशाच नेवले का रूप धारण करके यज्ञ में विघ्न डालने आया है। वे चौंकते हुए नेवले को देख रहे थे जो निर्भीकता पूर्वक यज्ञशाला की भूमि पर लोट रहा था।
__कुछ समय तक इस दृश्य को देखने के पश्चात् कुछ लोगों ने हिम्मत करके नेवले से भूमि पर लोटने का और उसके जोर से हँसने का कारण पूछा।
इस पर नेवला मनुष्यों के जैसी भाषा में बोला- “सज्जनो! आप यह यज्ञ करके बड़े प्रसन्न दिखाई दे रहे हैं और सोच रहे हैं कि हमने यह यज्ञ करके बड़ी प्रशंसा के योग्य कार्य किया है। पर याद रखिये आपका यह गर्व मिथ्या और भ्रममात्र है। इससे महान यज्ञ तो कुरुक्षेत्र में रहने वाले एक गरीब ब्राह्मण ने बहुत पहले किया था जिसका मुकाबला आपका यह यज्ञ नहीं कर सकता।"
यज्ञशाला में उपस्थित लोग नेवले को देखकर जितना चौंके थे, उससे भी अधिक उसकी बात सुनकर चौंक पड़े । अनेक याजक ब्राह्मणों ने उससे पूछा
"भाई ! तुम कौन हो ? कहाँ से आये हो और इस अश्वमेध महायज्ञ की बुराई क्यों कर रहे हो ? यह यज्ञ सभी शास्त्रोक्त विधियों और सामग्रियों के द्वारा किया गया है तथा इस यज्ञ में आने वाले धनी-निर्धन एवं याचकों को पूर्ण रूप से सन्तुष्ट किया है । न यहाँ मन्त्र-पाठ में कोई त्रुटि हुई है, न आहुतियाँ गलत तरीके से दी गई हैं और न ही दान में कहीं कमी की गई है । चारों वर्गों के व्यक्ति पूर्ण रूप से सन्तुष्ट किये गये हैं। फिर किस कारण तुम इसे गलत और दोषपूर्ण बता रहे हो?"
नेवले ने अपनी बात पर जोर देकर पुनः कहा- “मैं सत्य कहता हूँ कि उस दरिद्र ब्राह्मण ने एक सेर आटे में जो यज्ञ किया था, वह आपके लाखों रुपये खर्च करके किये गये इस महायज्ञ की तुलना से अनेक गुना अधिक महत्त्वपूर्ण था।"
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