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आनन्द प्रबधन | छठा भाग दूसरी सीख 'ख' अक्षर के द्वारा क्षमा धारण करने की कवि ने दी है। आप जानते ही हैं कि जिस घर में स्त्री संस्कारशील, गुणवान एवं सहनशील होती है वही घर सुख एवं शांति का आगार कहलाता है । ज्ञानियों ने नारी को पृथ्वी के समान सहनशील बताया है। यह बात पूर्णतया सत्य है । आप पुरुष सदा स्त्रियों पर रौब जमाया करते हैं । बात-बात में बिगड़ना और कटुवचन कहना पुरुष होने के नाते आप अपने जन्मसिद्ध अधिकार में मानते हैं। किन्तु आपके घर की सुलक्षणी नारियाँ घर में अपना समान अधिकार और समान महत्त्व समझती हुई भी आपके दुर्व्यवहार को सहज ही पी जाती हैं। अगर नारी का महत्त्व नर के बराबर ही नहीं होता तो हमारे पूर्वज एवं विद्वान, पुरुष एवं स्त्री को गृहस्थी रूपी गाड़ी के दो पहिये क्यों कहते ? कवि गिरिधर ने भी कहा है
जीवन-गाड़ी ज्ञान धुरी, पहिये दो नर-नारी । सुख मंजिल तय करन हित, जो रहु इन्हें सम्हारि ॥ जो रहु इन्हें सम्हारि लगे ना ऊँचे नीचे । दोनों सम जब होहिं, चलहु फिर आँखें मीचे ॥ कह गिरिधर कविराय, यही तुम धारो निज मन ।
या विधि हों नर-नारी, सफल तब निश्चय जीवन ।। कहते हैं-गृहस्थ-जीवन एक गाड़ी के समान है और उसकी धुरी ज्ञान एवं विवेक है। आगे कहा है कि इस गाड़ी के दोनों पहिये स्त्री एवं पुरुष हैं, जिन्हें बड़ी सावधानी से जोड़ना चाहिए ताकि वे ऊँचे-नीचे रहकर गाड़ी को नुकसान न पहुँचाएँ अर्थात् उसका सन्तुलन न बिगाड़ें।
कवि के कहने का अभिप्राय यही है कि गृहस्थ-जीवन रूपी गाड़ी को नर एवं नारी अपने सम्यक् ज्ञान एवं विवेक रूपी धुरी के द्वारा सन्तुलित रखते हुए चलाएँ तो वह इतने सुन्दर ढंग से चलती रहेगी कि कभी भी किसी तरह की परेशानी अथवा चिन्ता सामने नहीं आयेगी।
तो कवि ने पुरुष एवं स्त्री का समान महत्त्व बताया है और पुरुष के अन्याय एवं अत्याचार को भी सहन करते हुए स्त्री को क्षमा-भाव रखने की शिक्षा दी है। वह इसीलिये कि अगर वह सहनशीलता एवं क्षमा-भाव रखेगी तो जीवन रूपी गाड़ी का सन्तुलन बिगड़ेगा नहीं और घर में सतत सुख एवं शांति बनी रहेगी।
आगे 'ग' अक्षर को लेकर गाली-गलौज एवं कलह का सर्वथा त्याग करने के लिये कहा है। हमारे यहाँ प्रायः कहा जाता है कि स्त्रियाँ कलहप्रिय होती हैं और तनिक-तनिक सी बात पर गाली-गलौज पर उतर आती हैं । इस विषय में मेरा विचार
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