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________________ प्रकाशकीय धर्म प्रेमी पाठको ! आपके करकमलों में हम 'आनन्द-प्रवचन' का यह पांचवां भाग उपस्थित कर रहे हैं । अतीव हर्ष का विषय है कि जैनधर्म दिवाकर आचार्य श्री आनन्द ऋषि जी महाराज के प्रभावोत्पादक प्रवचनों को पाठकों ने पसन्द किया है और इसलिए हम उनको संग्रहित करके क्रमशः भागों के रूप में प्रकाशित कर रहे हैं । आचार्य देव के प्रवचनों का सम्पादन सुश्री कमला जैन 'जीजी' कर रही हैं जिनकी लेखनी विषयों को व्यवस्थित करने में तथा भाषा आदि सभी को सुन्दर रूप देने में सफल साबित हुई है । आपका कठिन परिश्रम और सेवा अविस्मरणीय तथा सराहनीय है । हम राजस्थान के गौरव पंडितरत्न श्री मिश्रीमल जी महाराज 'मधुकर' के भी कृतज्ञ हैं जिन्होंने 'आनन्द प्रवचन' की प्रस्तावना के रूप में अपने सुन्दर विचार प्रकट किये हैं तथा पुस्तक का महत्व बढ़ाया है । 'आनन्द-प्रवचन' के सभी भागों का प्रकाशन श्रीचन्द जी सुराणा 'सरस' के द्वारा हो रहा है । आपकी मुद्रण व्यवस्था अत्यन्त सुन्दर, आकर्षक एवं प्रभावशाली है, जिसका योगदान पाकर संस्था आभारी है । हमें विश्वास है कि जीवन के सभी क्षेत्रों का मार्मिक विश्लेषण करने वाले आचार्य श्री के इन प्रवचनों का श्रद्धालु पाठक स्वागत करेंगे तथा इनसे अधिकाधिक लाभ उठाकर अपने जीवन को श्रेष्ठ बनाएँगे । Jain Education International मंत्री श्री रत्न जैन पुस्तकाल पाथर्डी (अहमदन For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004008
Book TitleAnand Pravachan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1975
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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