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प्रबल प्रलोभन
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चाहा । ज्योंही उसने जोर से दरवाजा बन्द करने का प्रयत्न किया, तपस्वी ने अन्दर घुसने के लिये अपना सिर अन्दर कर लिया। परिणाम यह हुआ कि मोटे और भारी किवाड़ों के बीच में आकर ऋषि का सिर फट गया और उसी क्षण तपस्वी की मृत्यु हो गई । ऐसे-ऐसे उदाहरणों से ज्ञात होता है कि जीवन भर तपस्या करने वाले वृद्ध और जितेन्द्रिय पुरुष भी जब स्त्रियों को देखकर विकार-ग्रस्त हो जाते हैं तब औरों का तो कहना ही क्या है !
आपदाओं का मूल संयमी साधक स्त्री को अनेक आपदाओं का मूल मानते हैं। प्राचीन इतिहास को देखने पर पता चलता है कि स्त्रियों के कारण अनेक अनर्थ घटते रहे हैं।
स्त्री के कारण ही महाभारत हुआ। राजा बालि भी स्त्री के कारण मारा गया। रावण का सर्वनाश हुआ और नहुष को स्वर्ग से गिरना पड़ा । शिशुपाल का सिर स्त्री के कारण ही काटा गया और नूरजहां के कारण शेरे-अफगान को मरना
पड़ा।
स्पष्ट है कि स्त्री अनेक अनर्थों का कारण बनती है इसलिये भगवान साधक को उनके संसर्ग से दूर रहने का आदेश देते हैं। इस विषय में दूसरी गाथा इस प्रकार है
एवमादाय मेहावी, पङ्कभूयाओ इथिओ। नो ताहि विणिहन्नज्जा चरेज्जत्तगवेसए ।
-उत्तराध्ययन सूत्र. अ. २. गा. १७ अर्थात् मेधावी पुरुष स्त्रियों को कीचड़ के समान मानकर उनके द्वारा अपने आपको हनन न करे, अपितु आत्मगवेषी बनकर दृढ़तापूर्वक अपने संयम-मार्ग में ही विचरण करे।
दृढ़तापूर्वक साधना पथ पर चलने के लिये साधु को स्त्रियों से दूर रहना तथा साध्वियों को पुरुषों के संसर्ग से बचना चाहिये। क्योंकि संसर्ग में रहने से विचारों के विकृत होने का भय रहता है । भगवान ने साधु-साध्वियों के लिये पूर्ण ब्रह्मचर्य के पालन का आदेश दिया है और इसके लिये नौ उपाय भी बताए हैं । इन उपायों को शास्त्र की भाषा में 'बाड़' कहा गया है। बाड़ कहते हैं, रोकने वाले को। लोग अपने बाग-बगीचों और खेतों के चारों ओर बाड़े लगाते हैं ताकि कोई पशु या चोर व्यक्ति उनके अन्दर घुसकर पेड़-पौधों और फसलों को हानि न पहुंचा सके । कांटों की बाड़ होने से ऐसे प्राणी अन्दर आने से रोक दिये जाते हैं।
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