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________________ ३१० आनन्द-प्रवचन भाग-४ कहा जाता हैं जब रावण ने सीता का हरण कर लिया था। राम उन्हें खोजते हुए सुग्रीव से मिले । सुग्रीव के द्वारा पता चला कि सीता को चुराकर रावण लंका में ले गया है। रामने सुग्रीव से पूछा-लंका यहाँ से कितनी दूर है ? सुग्रीव इस प्रश्न का उत्तर दे ही नहीं पाए थे कि वानरवंशियों का सेनापति जामवन्त जो कि शरीर से अत्यन्त वृद्ध था पर चेहरे पर बड़ी तेजस्विता और ओज रखता था, बोल उठा- लंका इतनी दूर है कि हजारों वर्षों में भी वहाँ तक नहीं पहुंचा जा सकता, और वही लंका इतनी पास है कि एक कदम रखने पर दूसरा उठाते ही वह लंका में रखा जा सकता है। राम भोंचक्के होकर जामवन्त का मुंह देखने लगे। बोले-"भाई ! यह कैसी बात है ? एक तरफ तो कहते हो लंका तक हजारों वर्षों में भी नहीं पहुंचा जा सकता और दूसरी तरफ कह रहे हो अगला कदम लंका में ही रखा जा सकता है । तुम्हारी इन बातों में क्या रहस्य है ?" जामवन्त ने मुस्कुराते हुए कहा-"महाराज ! जिस व्यक्ति के हृदय में लगन, उत्साह और पुरुषार्थ की भावना नहीं है, वह तो हजारों वर्ष बीतने पर भी लंका तक नहीं पहुंच सकता। किन्तु जिसके हृदय में पूर्ण विश्वास और दृढ़ भावना है वह कुछ ही पलों में लंका तक पहुंच सकता है।" आशा है आप भी बन्धुओ, जामवन्त के द्वारा कही हुई बात का अर्थ समझ गये होंगे कि सच्ची लगन, आत्म-विश्वास और पुरुषार्थ होने पर कोई भी कार्य असंभव नहीं है। हमारी आत्मा में ही तो अनन्तशक्ति छिपी हुई है और हमें इसे केवल उपयोग में लेना है। आत्मा अनन्तज्ञान, अनन्तदर्शन और अनन्तचारित्र्य का धनी है। आवश्यकता है इन पर पड़े हुए अज्ञान और मिथ्यात्व आदि के आवरणों को हटाने की । हमारी सच्ची लगन, श्रद्धा और साधना से जिस दिन वे हट जाएंगे आत्मा अपने पूर्व ज्योतिर्मय रूप में आ जाएगी और फिर कभी भी उसे इस संसार में नहीं आना पड़ेगा। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004007
Book TitleAnand Pravachan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1974
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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