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आनन्द- प्रवचन भाग
आखिर आँख बंद करके राम-राम करने से तुम्हें कौन-सा आनन्द प्राप्त होता है ।
महात्मा जी ने उसी समय ध्यान समाप्त किया था अतः उस व्यक्ति को देखकर मुस्कराये और बोले - "भाई, मैं कमाई ही कर रहा हूँ ।"
"क्या खाक कमाई कर रहे हो ? आँखें मूँद कर बैठे रहने से क्या कोई तुम्हें यहाँ धन लाकर दे देगा ?"
"धन तुम किसे कहते हो ?" महात्मा जी ने उससे पूछ लिया ।
व्यक्ति भी था । अकड़ कर बोला – “यह भी कोई बताने की बात है ? पैसा, रुपया, सोना, चाँदी, हीरे और जवाहरात धन कहलाता है । देख लो इस समय भी मेरे गले में कंठा, हाथ में सोने की चैनवाली घड़ी और अंगुली हीरे की अंगूठी है। यही तो धन है ।"
"क्या कीमत है इनकी ?" संत ने सहजभाव "इनकी कीमत तो हजारों रुपये हैं ।"
फैले इस निर्जन वन में
प्यास के मारे तुम्हारी दिखाई नहीं न दे, यहाँ
"अच्छा मैं तुम से यह पूछता हूँ कि मीलों तक अगर तुम भटक जाओ और इस भीषण गर्मी में जान निकलने लगे पर दूर-दूर तक कोई व्यक्ति तुम्हें तक कि मारे छटपटहट के और रास्ते के न होने पर एक कदम भी न बढ़ सको । पर उसी समय एकाएक कोई व्यक्ति आकर तुम्हें एक लोटा पानी दे किन्तु बदले में तुम्हारी ये सब कीमती चीजें माँगे तो उसे लोटाभर पानी के बदले में सब चीजें दे दोगे या नहीं ?"
पूछ
व्यक्ति संत की बात सुनकर हँस पड़ा और बोला - "महात्मा जी ! कैसी बातें करते हो ? मैं मूर्ख हूँ क्या ? ये कीमती चीजें क्या प्राणों से बढ़कर हैं ? प्राण बचाने के लिये मैं दे दूँगा ही ।'
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लिया |
एक लोटे
" तो भाई ! इन हजारों रुपयों की कीमती चीजों को जब तुम एक लौटे पानी के बदले में ही दे सकते हो तो इनका क्या मूल्य हुआ ? सिर्फ एक लोटा पानी के बराबर ही तो । न जाने कितनी मेहनत करके तुमने पानी के मूल्य जितना धन कमाया है और वह एक लोटा पानी भी कितनी देर तक के लिये तुम्हारी प्यास मिटायेगा ? घंटे, दो घंटे या चार घंटे । फिर तुम्हें प्यास लग जाएगी। पर मैं तो ऐसा धन कमा रहा हूँ कि जिससे अनेक जन्मों की प्यास मिट जाय और फिर भविष्य में कभी लगे ही नहीं । अब बताओ, मेरे धन में और तुम्हारे धन में अन्तर है या नहीं ? क्या मेरे धन के मुकाबले में तुम्हारा धन अभिमान करने योग्य है ?"
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