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कर्म लुटेरे !
धर्मप्रेमी बंधुओ, माताओ एवं बहनो !
पूर्व प्रवचनों में हमने सम्यक ज्ञान और सम्यकदर्शन के विषय में विचार किया । आज चारित्र के विषय में वर्णन करने की भावना है। जो व्यक्ति जिज्ञासु होते हैं वे प्रत्येक विषय पर चिंतन-मनन करते रहते हैं और चिंतन जितना गहरा होता जाता है उतना ही वह आध्यात्मिक विषयों को स्पष्ट करता है। धर्म ग्रन्थों और धर्म-शास्त्रों में हमें धर्म के मूल सिद्धांत और उनका संक्षिप्त विवेचन प्राप्त होता है किन्तु उन्हें भली-भांति समझाने के लिये हमारे आचार्यों ने प्रयत्न किया है और उनके पश्चात् कविजन विषयों को और भी स्पष्ट करते रहे हैं । ऐसे ही एक कवि की की कविता जो भजन के रूप में लिखी गई है, आज आपके सामने रखूगा। कवि हैं पूज्य श्री अनिल ऋषि जी महाराज । आप शास्त्रविशारद कहलाते थे और बड़े विद्वान थे। आपकी अनेक प्रासादिक कविताएँ है जिनमें आध्यात्मिक विषयों का बड़े सुन्दर ढंग से विवेचन किया गया है। आज उनकी जिस कविता को मैं आपके सामने रख रहा हूँ, इसमें जिज्ञासु व्यक्ति अपनी स्थिति का वर्णन करते हुए ईश्वर से प्रार्थना करता हूं कि मैं किस प्रकार इस स्थिति से छुटकारा पाकर मोक्ष प्राप्त कर सकता हूँ? कविता इस प्रकार है
प्रभु मोक्ष नगर कैसे जाना ? कर्मों से पड़ा है पाना । नाना स्वरूप बनवाया, भव मंडप में नचवाया।
ऐसे दोस्त ....... कर्मों से पड़ा है पानातो, जिज्ञासु भक्त भगवान से प्रश्न कर रहा है-हे प्रभो ! मैं इस संसार के बंधनों से छुटकारा पाकर मोक्ष नगर में जाना चाहता हूँ पर जाऊँ कैसे ? क्योंकि
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