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________________ पूज्यपाद श्री त्रिलोकऋषिजी धर्मप्रेमी बंधुओ, माताओ एवं बहनो ! आज कविकुल-भूषण पूज्यपाद श्री त्रिलोक ऋषि जी महाराज साहब की पुण्य तिथि है। इस विशिष्ट प्रसंग पर आज मैं उन्हीं के विषय में संक्षिप्त रूप से कुछ कहना चाहता हूं। उस महापुरुष ने अपनी दस वर्ष की अल्प-वय में ही भागवती दीक्षा अंगीकार कर ली थी। साथ ही आपकी जन्मदायिनी माता नानुदेवी, बहन हीराबाई एवं ज्येष्ठ बन्धु श्री मोडमलजी ने भी दीक्षा ग्रहण की। इस प्रकार एक ही परिवार के चार सदस्यों ने एक साथ संयम-पथ पर अपने चरण रखे थे। ____ दीक्षा ग्रहण करने के पश्चात् आपके बड़े भाई जो कुवरऋषि जी के नाम से प्रसिद्ध हुए, वे एक दिन उपवास और एक दिन भोजन, इस प्रकार एकांतर तप करने में लग गए और त्रिलोकऋषि जी महाराज ज्ञान-ध्यान की प्राप्ति में संलग्न हुए। आप विचरण करते हुए जब भोपाल पधारे तो इतने कट्टर थे कि स्थानक में बात करना भी निषिद्ध कर दिया। भोपाल क्षेत्र में मोड़ समाज जो कि सम्प्रदाय की दृष्टि से विशेष सम्प्रदाय माना जाता था उसे स्थानकवासी धर्म में प्रविष्ट करने के लिये पहले भी अनेक संतों ने जाकर प्रयत्न किया था, किन्तु आपके त्याग व तपस्या का ही उन पर जबर्दस्त प्रभाव पड़ा था। अब तो मोड़ समाज में यद्यपि बहुत लोग अच्छी दशा में हैं और मोड़ों का स्थानक ही कहलाता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004007
Book TitleAnand Pravachan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1974
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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