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सच्चा पंथ कौन सा ?
२८७ संत तुकारामजी मन को दृढ़ एवं स्थिर रखने के लिये भगवान से क्या प्रार्थना करते हैं ?
आता देवा ऐसा करी उपकारदेहा चा विसर पड़ो माझा । आशा, भय, लाज, चिता, काम, क्रोध तोड़ावा संबंध यांचा माझा । तुका म्हणे न को वर वधू देवा
घेई माझी सेवा, भाव शुद्ध ॥ कहते हैं- "हे भगवन ! मुझ पर ऐसा उपकार करो कि मैं इस शरीर के सुख-दुःख से सर्वथा उदासीन हो जाऊँ। मेरी इस देह को कैसा भी कष्ट क्यों न उठाना पड़े कभी भी मैं विचलित न होऊँ ।
बालमुनि गजसुकुमाल के मस्तक पर धधकते हुए अंगारे रखे गये, मेतार्य मनि और खंदक मुनि को भी मरणांतक कष्ट भोगने का अवसर आया । किन्तु उन्हें रंच-मात्र भी शरीर के प्रति ममत्व नहीं रहा था अतः वह कष्ट, कष्ट नहीं महसूस हुआ । ऐसा कैसे हो सका ? इसलिए कि उनका मन मजबूत था । मन की ऐसी ही मजबूती के लिये तुकाराम जी ईश्वर से प्रार्थना कर रहे हैं । वे आगे कहते हैं
"आपल्या आत्म्या बरोबर ह्या ज्या वस्तु अनंतकाला पासून लागत्या आहेत् आशा, भय, चांगल्या कामात लाज बाटणे, शारीरिक चिंता करणे विषय वासना, क्रोध, जे लागल्या आहेत् । हे देवा, ही जी माझी प्रार्थना आहे, तिच्याकडे लक्षद्या वर पाहु नका। या कारणामुलेच मला अनंत वेला जन्मावे लागले आणि मरावे लागले म्हणून यांचा संबंध माझ्याशी तोडून टाका । शुद्ध भावेनेने आहे अशी तुकारामाची मागणी आहे।"
बड़े मर्मस्पर्शी शब्दों में तुकाराम जी ने प्रभु से याचना की है—'हे देव ! आशा, भय, लाज, चिंता, काम, क्रोध आदि ये समस्त दोष जो अनादि काल से आत्मा के साथ लगे हुए हैं तथा आत्मा को मलिन बनाए हुए हैं, इनसे मेरा सम्बन्ध तोड़ दो ! अपनी आज्ञानुसार दान, शील, तप तथा संसार से विरक्ति रखना, आदि आदि सेवाएं भले ही आप मुझसे ले लो पर शुभ भाव से मेरी जो प्रार्थना आपसे है, उसे सफल बनाओ। तुकाराम की यही माँग आप से है।' . _____ तो बंधुओ, आपके कथन का सारांश यही है कि मुक्ति के इच्छुक प्रत्येक व्यक्ति को अपने दुर्लभ जीवन का महत्व समझना चाहिये तथा अपने जीवन का कोई भी क्षण निरर्थक न जाए इसका ध्यान रखना चाहिये । उसे जहाँ से
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