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आनन्द-प्रवचन भाग -४
आराधना करने से उस अज्ञात यात्रा का पाथेय जुटता है। और यह तभी हो सकता है कि जबकि हम धर्म के मंगलमय और सम मार्ग का त्याग करके कभी भी अधर्म के विषम-मार्ग पर कदम न रखें । अगर ऐसा न हुआ, अर्थात् हमने अधर्म-रूपी विषम मार्ग को अपना लिया तो अंत में पश्चाताप करने के अलावा कुछ भी हाथ नहीं आयेगा।
अतः हमें चेत जाना है और पाप-मार्ग की स्वप्न में भी वांच्छा न करके धर्म -पथ पर अडिग कदमों से चलना है । तभी हमारा भविष्य मंगलमय बनेगा।
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