________________
२४०
आनन्द-प्रवचन भाग-४ का डर रहे और न इसीप्रकार सामने से आनेवाली किसी बस या ट्रक से टकरा जाने का ही डर रहे। .. इसके अलावा आज व्यक्ति इतना अधीर हो गया है कि वह प्रत्येक मार्ग के लिये 'शार्ट-कट' ढूढ़ता है । वह सोचता है कि इस छोटे रास्ते से चलने पर शीघ्र अपने गन्तव्य पर पहुंच जाएँगे । किन्तु वह भूल जाता है कि ऐसे छोटे मार्ग ऊबड़-खाबड़, आड़े-टेड़े और कंटकाकीर्ण होते हैं। उन विषम मार्गों पर बैल गाड़ी चलाने पर कभी उसकी धुरी टूट जाती है, या कभी बैलों की गर्दनें टूट जाती हैं और अगर वे वाहन कार या बस के रूप में हुए तो पहियों में पंचर हो जाते हैं और सारे यात्री घंटों के लिये वहीं भूखे-प्यासे पड़े रहने के लिये बाध्य हो जाते हैं। यह सब विषम मार्ग पर चलने के कारण होता है । सम मार्ग पर यह परिस्थिति यकायक नहीं आती। यकायक शब्द मैंने इसलिये कहा हैं कि अगर होनहार ही अशुभ हो तो उसे विषम या सम किसी मार्ग पर नहीं रोका जा सकता। महाकवि कालिदास ने एक स्थान पर लिखा है
भवितव्यानां द्वाराणि भवन्ति सर्वत्र । भावी के लिये सर्वत्र द्वार खुले रहते हैं। 1. तात्पर्य यही है कि होनी को कोई रोक नहीं सकता और उसके अनुसार ही सारे संयोग इकट्ठे हो जाते हैं । आचार्य चाणक्य ने भी कहा है
तादृशी जायते बुद्धिर्व्यवसायोपि तादृशः ।
सहायास्तादृशा एव यादशी भवितव्यता ॥ अर्थात्-वैसी ही बुद्धि हो जाती है, वैसा ही उपाय होता है और वैसे ही सहायक मिल जाते हैं जैसा कि होनहार होता है।
तात्पर्य यही है कि होनी पर तो किसी का वश नहीं है और लाख प्रयत्न करने पर भी वह घट ही जाता है । आप व्यापारी हैं और लाखों का व्यापार करते हैं। वस्तुओं की तेजी-मंदी देखकर ही आप अपनी पूँजी उसमें लगाते हैं । फिर भी अगर घाटा आ जाय तो उसे होनहार और कर्मफल माना जाता है। आपका इसमें दोष नहीं। दोष वहीं माना जाता है जहाँ व्यक्ति जानबूझकर भूल करे । अर्थात् गाड़ीवान्, मोटर ड्राइवर या राहगीर सम और सीधे मार्ग को छोड़कर विषम मार्ग पर चलने लगे तो यह उसकी भूल और अज्ञान का परिचायक है।
For Personal & Private Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org