SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 160
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आज काल कि पांच दिन जंगल होगा वास १४५ के हाथ से मारे गए । किंतु पांडव नीतिवान् और सदाचारी थे, क्या वे भी यहां रह पाते ? पर कहां, उनकी आयु सम्पूर्ण होते ही उन्हें भी यह लोक छोड़ना पड़ा । और उसके बाद भी बड़े-बड़े बादशाह और राजा-महाराजाओं की परम्परा चलती रही । पर आज कोई भी उनमें से सदा के लिये यहां नहीं रह सका । इसीलिये उर्दू के कवि जौक ने कहा दिखा न जोशो-खरोश इतना जोर पर चढ़कर । गये जहान में दरिया बहुत उतर चढ़ कर ॥ अरे मानव ! अपने बल, वैभव, अथवा परिवार के गर्व में आकर इतना जोश-खरोश न दिखा । इस दुनियां में बहुत से दरिया चढ़-चढ़कर उतर गए । कहने का अभिप्राय यही है कि जिस प्रकार संसार की अन्य समस्त वस्तुएँ नश्वर हैं उसी प्रकार मनुष्य का जीवन भी क्षणभंगुर है । प्रत्येक व्यक्ति मौत के नाम से कांपता है और मरना नहीं चाहता, पर उसे उससे छुटकारा नहीं मिलता। इसलिये विवेकी और बुद्धिमान् व्यक्ति को चाहिये कि वह अपने अल्पकालीन जीवन को भोग-विलास एवं कषायों के उद्रेक से पापमय न बनाए तथा विश्व बन्धुत्व की भावना से परिपूर्ण रखते हुए प्राणीमात्र की सेवा में लगाकर इसको सार्थक बनाए । सेवाभावी मघा बौद्ध ग्रन्थों में भगवान बुद्ध के पिछले जन्म की एक कथा आती है । पूर्व जन्म में उनका जीव मगध के एक गाँव में पैदा हुआ । उस समय 'मघा नक्षत्र' का समय था अतः उनका नाम ही मघा रख दिया गया । मघा की आकृति बड़ी आधार पर ज्योतिषियों ने सचमुच ही जब वह बारह व्रत अपना लिया । 1 भव्य थी और अन्य सभी लक्षण शुभ थे । उनके कहा कि यह बालक बड़ा सेवा भावी होगा । और वर्ष की उम्र का मुशकिल से हो पाया, उसने सेवा वह अपने घर और बाहर की सफाई तो करता ही था, पूरे गाँव की सफाई भी करने लग गया । लोग उसे तंग करने के लिये उसके द्वारा साफ किये हुए स्थानों पर पुनः कूड़ा-करकट डाल दिया करते थे, किन्तु मघा शांतिपूर्वक उन स्थानों को फिर साफ कर देता । १० Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004007
Book TitleAnand Pravachan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1974
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy