________________
१३७
तुलसी ऊधंबर के भये, ज्यों बंधूर के पान
भोगों के अथाह सागर में डुबकियाँ लगाता रहता है वह अपने कुल की मर्यादा भंग तो करता ही है, मरने के पश्चात् नरक का भी अधिकारी बनता है । गोस्वामी तुलसीदास जी ने कहा है:
इत कुल की करनी तजे,
उतन भजे भगवान । तुलसी ऊधंबर के भये, ज्यों बंधूर के पान |
अर्थात् — जो गुणहीन व्यक्ति मनुष्य जन्म पाकर भी दान, शील, तप, संयम, क्षमा, संतोष आदि सद्गुणों को नहीं अपनाता तथा विषय-भोगों में रत रहता हुआ कदाचार का सेवन करता है वह इस जन्म में तो कुल का नाम डुबोता ही है साथ ही कभी भगवान का भजन न करने के कारण परलोक भी बिगाड़ लेता है । और इस प्रकार धूल के बवंडर में फंसे हुए पत्तों के समान उसकी दशा होती है जो कि न तो आकाश में ही जा पाते हैं और न ही पृथ्वी पर रहते हैं । केवल अधर में ही उड़ते रहते हैं ।
इस प्रकार अनन्तानन्त पुण्यों के फलस्वरूप प्राप्त हुआ मानव जन्म व्यर्थ चला जाता है और उसे इस प्रकार व्यर्थ गँवा देने को मूर्खता नहीं तो और क्या कहा जा सकता है ? इसीलिये कविवर कहते हैं
" अरे भोले प्राणी ! तू निर्गुणता के इस कलंक को अपने मस्तक से हटाने का प्रयत्न कर तथा सद्गुरु की शिक्षा, उनके उपदेश और उनके आचरण से लाभ उठा । अपने में सद्गुणों का संकलन कर और उनकी सहायता से अपने कृत कर्मों को नष्ट करके आत्म-कल्याण कर । ऐसा करने पर इस लोक में तो तेरा जय-जयकार होगा ही, परलोक में भी तुझे अक्षय सुख की प्राप्ति हो सकेगी।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org