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आनन्द-प्रवचन भाग-४
कागद लिखत लोग ऊपर प्रक्षेपे मोहे, बिछावे से नरम न चुभे पग भारी है।
और भी अनेक गुण मोय में नराधिपत,
निगुणी को उपमा न लागत हमारी है। मिट्टी कह रही है- “मैं कैसे निर्गुणी हूँ ? मुझ में तो अनेक गुण विद्यमान हैं । यथा-मैं बालकों के खेल का सर्वोत्तम साधन हूँ। मेरे द्वारा नानाप्रकार के खिलौने बनाये जाते हैं और उन पर रंग चढ़ाकर गुड्डे, गुड़िया, बन्दर, भालू आदि तैयार किये जाते हैं। बच्चे उन्हें पाकर बड़े खुश होते है तथा उनसे खेलते हैं। बड़ी बात तो यह है कि मेरे द्वारा निर्मित खिलौने बड़े सस्ते दो-दो पैसे या चार-चार पैसे में मिल जाते हैं अतः बेचारे निर्धन व्यक्ति भी उन्हें खरीद कर अपने बच्चों को खुश कर लेते हैं।" ____ "इसके अलावा वर्षाऋतु में तो मैं बिना पैसे के ही बालकों का खूब मनोरंजन कर देती हूँ। पानी बरसने पर जब मैं गीली हो जाती हूँ तो बच्चे स्वयं मेरे द्वारा मकान, लड्डू, चूल्हा, चक्की आदि बना-बनाकर खेलते हैं और खुश होते हैं।" ___"दीवाली के आस-पास जब बरसात के कारण सबके कच्चे घरों की छपाई बह जाती है. उस समय तो घर-घर में मेरे ढेर लग जाते हैं और मैं दीवालें, चबूतरे ताथ फर्श आदि बनाने के काम आती हूँ। अगर उस समय में सहायता न करूं तो कैसे घरों की मरम्मत हो और कैसे घर के बाहर हताई करने के लिये चबूतरे बनें ? तालाबों की पालें अगर मेरे अभाव में न बनें तो क्या हाल हो ? क्या बाढ़ में सब कुछ नष्ट नहीं हो जाएगा ? सड़कों पर भी जब बर्षा के द्वारा कीचड़ हो जाता है या गन्दे हो जाते हैं तब भी मुझे ही जमीन पर डाल कर उन्हें सूखा और समतल बनाया जाता है तथा आप लोग उस पर निर्विघ्न चलते हैं। मेरे विषय में कवि 'माघ' ने कहा भी है:--
पादाहतं यदुत्थाय मर्धानमधिरोहति ।
स्वस्थादेवापमानेऽपि देहिनस्तद्वरं रजः ।। जो धूल पैर से आहत होकर उड़ती है और आहत करने वाले के सिर पर चढ़ जाती है, वह अपमान होने पर भी स्वस्थ बने रहने वाले शरीर धारी मनुष्य से श्रेष्ठ है।" __ "इस प्रकार मैं अपने गुण स्वयं ही कहाँ तक गिनाऊँ ? मेरे बिना तो संसार के अनेकानेक कार्य रुक जाते हैं। होली के दिनों में जब लोग मानाप
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