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________________ तुलसी ऊधंवर के भये, ज्यों बंधूर के पान "और जब मैं सूख जाता हूँ तो भी पशुओं की पेटपूर्ति तो करता हूँ साथ ही गरीबों की झोंपड़ियों का छप्पर भी बनता हूँ । निर्धन व्यक्ति आप लोगों के जैसे बड़े-बड़े मकान तो बनवा नहीं सकते, फूस की झोंपड़ी ही बना लेते हैं । मैं उनको बड़ी सहायता करता हूँ तथा झोंपड़ी का छप्पर तो ऐसा बन जाता हूँ कि पानी जैसे तरल पदार्थ को भी आने से रोक देता हूँ।" . - "इसके अलावा भी शीत ऋतु में मैं लोगों की बड़ी सहायता करता हूँ। स्वयं जलकर बेचारे कपड़ों के अभाव में ठिठुरने वाले व्यक्तियों को गरमी पहुँचाता हूँ और मेरे द्वारा दी गई गरमी से वे अपनी जान असह्य शीत के कारण बचा पाते हैं । मैं साधु-संतों की भी बड़ी सेवा करता हूँ। साधु-संत आप लोगों के जैसे गद्दे रजाई तो रखते नहीं हैं पर मुझे नीचे बिछा लेते हैं तो मैं उन्हें कुछ राहत प्रदान करता हूँ।" ____"मेरे एक-एक तिनके को जोड़कर बनाए हुए रस्से से ही मदोन्मत्त हाथी बाँधे जा सकते हैं जो सहज ही किसी के काबू में नहीं आते । कागज, जिस पर आप लिखते हैं, पुस्तकें छपवाते हैं । तथा अन्य सैकड़ों कामों में लेते हैं, वे भी मेरे द्वारा ही बनते हैं। .. "इस प्रकार है नराधिप ! मुझ में अनेक गुण ऐसे हैं जो निर्गुणी व्यक्ति में नहीं होते । अतः उनसे मेरी तुलना मत करो, उनसे मेरी तुलना कभी नहीं की जा सकती।" तो अब लीजिये साहब ! तिनके ने भी गुणहीन को अपने से नीचा बता दिया। कवियों की मुसीबत ! पर वे हिम्मत नहीं हारते। अब वे संसार की सबसे तुच्छ वस्तु धूल जो कि सदा पैरों के नीचे रहती है, उसे निर्गुणी की तुलना में लाये और भर्तृहरि के श्लोक की अन्ति पंक्ति में जोड़ा _ 'मनुष्यरूपेण धूलेश्च पुजः ।' कवियों ने सोचा कि और किसी भी पशु पेड़ या पोधे से जब निर्गुण की उपमा नहीं दी जा सकती तो धूल से तो आखिर वह गया बीता नहीं है ? उससे तो गुणवान ही साबित होगा। किन्तु अफसोस कि धूल भी अपने गुण बताने से नहीं चूकी और बोली : धूल कहै बालक के खेल में आऊं मैं काम; ओटले बंधावे कोई, कोई बांधे पारी है। हुताशन परब सो मेरे बिन होत नहीं, कर्दम के मांही मेल्या होत पन्थ बारी है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004007
Book TitleAnand Pravachan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1974
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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