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पाप-नाशक तप
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जाता, स्वाध्याय नहीं कर सकते क्योंकि समय नहीं मिलता, और पौषध को तो करेंगे भी कैसे, क्योंकि 'डनलप' के गद्दों पर सोने वाले जमीन पर कैसे पड़े रहें, शरीर अकड़ जाता है और जमीन चुभती है जो अलग।
पर बंधुओ, याद रखो कि इस शरीर को आप कितना भी आराम से रक्खें, चाहे दस कदम भी चलकर इसे न थकाएँ और मोटर-गाड़ियों में घूमें, जरा भी भूखा न रखकर बादाम, पिस्तों से बड़ी पौष्टिक वस्तुएँ खिलाएँ तथा अपनी सम्पूर्ण इन्द्रियों को तृप्त रखते हुए उन्हें सुखी रखने का प्रयत्न करें किन्तु फिर भी रोग, जरा और मृत्यु का आक्रमण होते ही किसी दिन क्षणमात्र से ही यह आपको धोखा देकर निष्क्रिय हो जाएगा। आपकी जीवन भर की हुई सार-सम्भाल का यह पल भर के लिये भी लिहाज नहीं करेगा। यह आपके साथ नहीं चलेगा और न ही कुछ सुविधा आपके लिये करेगा । केवल. आपके मनोरथों पर तुषारापात करके जरा, रोग या मृत्यु किसी का भी बहाना लेकर ढेर हो जाएगा।
कोई अगर भाग्यशाली हुआ तो वृद्धावस्था में भी उसका शरीर ठीक रहेगा पर अत में रोग उसके शरीर को नष्ट करेगा । और पुण्य ने अधिक जोर मारा तो वह वृद्धावस्था में भी रोगों से बचा रहेगा किन्तु फिर भी मृत्यु से तो नहीं ही बचेगा। अचानक ही दिल की धड़कन बंद हुई अर्थात् 'हार्टफेल' हुआ और जिन्दगी समाप्त । अंत समय में केवल पश्चात्ताप ही बाकी रहता है।
मृत्यु के कगार पर खड़े किसी ऐसे ही व्यक्ति ने बड़े अफसोस के साथ कहा है -.
जो जन्मे हम संग, उतौ सब स्वर्ग सिधारे । जो खेले हम संग, काल तिनहं कहं मारे । हमहूँ जरजर देह निकट ही दीसत मरिबो ।
जैसे सरिता तीर वृक्ष को तुच्छ उखरिबो । अजहूँ नहिं छाँड़त मोह मन, उमग उमग उरझौ रहत ।
एसे अचेत के संग सों, न्याय जगत को दुख सहत । महायात्रा का यात्री क्या कह रहा है ? यही कि मेरे साथ जिन्होंने जन्म लिया था वे सब स्वर्ग चले गए और जो मेरे साथ खेल-कूदकर बड़े हुए हैं उन्हें भी काल मारे डाल रहा है। इधर मैं हूँ, पर मेरी देह भी इतनी जर्जर हो गई है कि अब मृत्यु समीप ही दिखाई दे रही है। जिस प्रकार नदी के किनारे पर ऊगे हुए वृक्षों की जड़ों से मिट्टी बह जाती है और वृक्ष उखड़ने
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