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________________ पाप-नाशक तप ११७ वैष्णव धर्म में एकादशी को बड़ा महत्त्वपूर्ण माना गया है अतः इस दिन व्रत किया जाता है। एकादशी एक वर्ष में चौवीस बार और एक माह में दो बार यानी हर पन्द्रहवें दिन आती है। संभवतः पहले यह निराहार की जाती थी किन्तु कहा जाता है कि एक बार किसी भक्त ने अपने गुरु से कहा___ 'भगवन ! मुझे पित्त की शिकायत रहती है अतः मैं किस प्रकार एकादशी करू ? संत ने उससे कहा-'वत्स ! अगर ऐसी बात है तो तू लवंग के ऊपर जो फूल होता है उसे खा लेना, जिससे पित्त का प्रकोप शांत रहेगा।' बस इसी घटना को लेकर धीरे-धीरे लोग एकादशी के दिन भी भर पेट खाने लगे । अब तो वे यह भी कहते हैं कि प्रतिदिन जो खाते हैं उसको बदल कर खाने से एकादशी हो जाती है। अब तो एक बड़ी मनोरंजक कहावत भी बन गई है __ "दिवस भर चरा पण एकादशी करा।" कोई कोई यह भी कहते हैं "गाढवा सारखे चरा, पण एकादशी करा।'' दोनों का सार यही है कि भले ही गधे के जैसे दिन भर चरो यानी दिन भर खाओ किन्तु एकादशी जरूर करो।। यह बात कुछ व्यक्ति अपने स्वार्थ के कारण कहते हैं, जिनसे भूखा भी नहीं रहा जाता और अपने आपको वे व्रत करने वाला भी साबित करना चाहते हैं। वास्तव में तो दशमी के दिन एक भुक्त और एकादशी के दिन ग्यारह बातों का आचरण करना और द्वादशी के दिन एकबार खाना चाहिए ऐसा विधान है। एकादशी को उपवास तथा द्वादशी के दिन एकासन करने पर ही एकादशी व्रत पूर्ण माना जाता है । तथा अभी मैंने जो कहावत आपके समक्ष रखी-"दिवस भर चरा, पण एकादशी करा।" इसका भी वास्तविक अर्थ तो यही है कि चौदह दिन खाओ किन्तु पन्द्रहवें दिन एकादशी अवश्य करो। लेकिन लोगों ने एक एकादशी के दिन भी भूखा न रहना पड़े इसलिए कहावत का अर्थ यह निकाल लिया कि एकादशी के दिन ही चाहे जितना और दिन खालो पर एकादशी का नाम अवश्य करो। ___ अपने स्वार्थ के लिए लोग शब्दों का अपनी इच्छानुसार अर्थ लगाने तथा औरों को भी चक्कर में डालने से नहीं चूकते । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004007
Book TitleAnand Pravachan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1974
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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