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पाप-नाशक तप
धर्मप्रेमी बंधुओ, माताओ एवं बहनो !
आज हमें तपस्या का महत्त्व समझना है। आप संभवतः यह समझते होंगे कि तप को जैनधर्म में ही महत्त्वपूर्ण माना गया है तथा जैन धर्मावलंबी ही एक दिन, दो दिन, दस दिन, पन्द्रह दिन और इससे भी अधिक महीने भर या दो-दो महीने की लम्बी तपस्या करते हैं। पर यह बात नहीं है । जैन धर्म के अलावा वैष्णव तथा मुस्लिम धर्म आदि में भी तप का विधान दिया है और सभी धर्मों को माननेवाले अपने-अपने ढंग से तप करते हैं। इसका तात्पर्य यही है कि जैनधर्म को माननेवाले निराहार और निर्जल तप उपवास करते हैं, वैष्णव धर्म को मानने वाले फलाहार ग्रहण करते हैं और मुसलमान लोग रोजों के दिनों रात्रि को चन्द्रमा देखकर आहार ग्रहण करते हैं । इसी प्रकार सभी अपने-अपने तरीके से तप अवश्य करते हैं । वैष्णव संत तुकाराम जी कहते हैं
"पंधरावे दिवशी, एक एकादशी, कां रे न करीशी व्रतसार ? काय तुझा जीव, जातो एक दिवसे,
फरालाचे पिशे घेशी घड़ी।" अर्थात् – 'पन्द्रह दिन में एक एकादशी आती है तो तू यह एकादशी क्यों नहीं करता है ? क्या एक दिन में तरा जीव चला जाएगा जो तू एक घड़ी भर फराल यानी फलाहार का सामान लेता है; एकादशी सब व्रतों का सार है अतः इसे अवश्य कर ।'
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