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________________ ११० आनन्द-प्रवचन भाग-४ __कहा है-व्यक्ति चाहे श्वेताम्बर हो, दिगंबर हो, बौद्ध हो या अन्य कोई भी हो, समता से भावित आत्मा ही मोक्ष पा सकती है इसमें तनिक भी संदेह नहीं है। इस संसार में अनेक धर्म हैं, अनेक पंथ और सम्प्रदाय हैं। सभी मूक्ति प्राप्त करना चाहते हैं और इसके लिये प्रयत्न करते हैं । किन्तु किसी का भी यह कहना कि हमारे धर्म का अवलंबन लेने वाला ही मोक्ष में जा सकता है, वह गलत और भ्रमपूर्ण है । अपने पंथ या संप्रदाय को ही धर्म मान लेने से बढ़कर भूल और कोई नहीं है । व्यक्ति को यह भलीभाँति समझ लेना चाहिये कि धर्म केवल आत्मा से संबंध रखता है, दूसरे शब्दों में धर्म आत्मा ही है ओर पंथ तथा सम्प्रदाय उसके भिन्न-भिन्न कलेवर यानी खोल हैं। खोल कोई भी हो, उससे फर्क नहीं पड़ता, अगर धर्म आत्मा में है या आत्मा धर्ममय है। आत्मा का धर्म है ऊँचा उठना । और वह अहिंसा, सत्य, संयम तथा तप आदि के द्वारा ही विशुद्ध और पाप-कर्मों के भार से हलकी होकर ऊँची उठ सकती है। आशय यही है कि धर्म का स्थान केवल आत्मा में है। वह किसी पंथ या सम्प्रदाय रूपी खोल में नहीं रहता या मंदिर, मसजिद, गिरजाघर, गुरु द्वारा या स्थानक में निवास नहीं करता। उसे प्राप्त करने के लिये किसी सम्प्रदाय का खोल चढ़ाने की जरूरत नहीं है और किसी विशेष स्थान पर जाकर मस्तक झुकाने को भी आवश्यकता नहीं है। बंधुओ, यहाँ मैं आपको विशेष ध्यान से यह जानने को कहता हूँ कि विभिन्न सम्प्रदायों या धर्मस्थानों से मेरा विरोध नहीं है। वे सब साधन हैं और उनका उपयोग करना बुरा नहीं है, बुरा है एक दूसरे की निंदा करना । यह दावा या कदाग्रह करना कि मेरा धर्म ही मुक्ति प्रदान करने वाला है, यह गलत है। क्योंकि धर्म केवल आत्मा है आत्मा में ही रहता है। उसका कोई खोल नहीं है, कोई स्थान नहीं है । आत्मा के अलावा उसे अन्य किसी स्थान पर खोजना मानव की सबसे बड़ी भूल है। किसी कवि ने अपनी एक कुंडलिया में भी बड़े सुन्दर ढंग से यह बात समझाई है: फांदी ते आकाश को, पठवी तें पाताल । दसौ दिशा में तू फिर्यो, ऐसी चंचल चाल ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004007
Book TitleAnand Pravachan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1974
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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