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________________ इन्सान ही ईश्वर बन सकता है ? १०७ आने वाले अन्य प्राणियों को भी उद्बोधन देते हुए उन्हें सत्पथ पर लाने का प्रयत्न करना चाहिए। शास्त्रों के इन उपदेशों पर जिन्होंने पूर्व में अमल किया है, उनका उद्धार हुआ है और जो भविष्य में अमल करेंगे उनका भी निश्चय ही उद्धार होगा। एक गुजराती कवि ने भी अपने काव्य में कहा है समय सरखा नथी सहुना, सदा तड़का अने छाया। वखत आये जरुर व्हाला, भला थइने भलू करजो॥ क्या कह रहे हैं ? यही कि संसार में सभी के लिए समय एक सा नहीं रहता। कोई यहां अमीर है और कोई गरीब है। कोई विद्वान् है और कोई अनपढ़ । कोई बुद्धिमान है, कोई मूर्ख। कोई रोगी है और कोई निरोग । इस प्रकार किसी पर सुख की शीतल छाया है तो किसी पर दुःख की कड़ी धूप भी है। अतः व्हाला भाई ! यानी प्रिय भाई, तुम स्वयं तो भले बनना ही साथ ही ओरों का भी भला करना । 'व्हाला' शब्द कितना प्रिय लगता है ? प्रिय शब्द प्रभावशाली होते हैं तथा जो कार्य व्यक्ति डांट-फटकार से नहीं करा सकता वे ही कार्य अन्य व्यक्ति से मधुर बोलकर कराये जा सकते हैं। उपदेश भी अगर प्रिय शब्दों में दिया जाय तो अधिक उपयोगी बनता है। __ जिस प्रकार सुनार सुवर्ण के आभूषण ठोक-पीटकर बनाता है किन्तु विवेक और सावधानी से पहले एक तरफ और फिर दूसरी तरफ बड़े धीरेधीरे ठोककर उन्हें गढ़ता है तो आभूषण उसकी इच्छानुसार सुन्दर बन जाते हैं । इसी प्रकार शिक्षा भी प्रिय शब्दों में दी जाय तो उसका सुनने वाले पर अच्छा असर पड़ता है। संत भी अगर प्रिय भाषा में बोलें तो आप लोग प्रसन्न होते हैं और तनिक भी अप्रिय कह दिया तो कह देते हैं—'महाराज बोलते तो अच्छा है लेकिन"।' बस ! यह लेकिन जहाँ आया सारा मामला बिगड़ जाता है। मराठी भाषा में भी कहा जाता है --- लोक-म्हणतात्' अहो हे महाराज, बोल तात तर फार चांगले, पण...' तर हे 'पण' जेथे आले तेथे सर्वगेले। आशय यही है कि मनुष्य पहले स्वयं भला अर्थात् अच्छा बने और फिर दूसरों की भलाई करे । भला बनना भी सरल नहीं है। बड़ा जोर पड़ता है Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004007
Book TitleAnand Pravachan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1974
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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