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आनन्द-प्रवचन भाग ४
तथा क्षमा आदि गुणों को नहीं उतारते । परिणामस्वरूप विटामिन रहित खुराक खाने से जिस प्रकार जीवन चलता तो है किन्तु शरीर पुष्ट नहीं होता, उसी प्रकार सद्धचरण के अभाव में जीवन के कार्य होते जाते हैं किन्तु उनसे आत्मा शुद्ध एवं पुष्ट नहीं होती ।
आज व्यक्ति जितना जानता है उसका सौवां हिस्सा ही वह अपने आचरण में नहीं उतारता । उदाहरणस्वरूप सभी जानते हैं कि चोरी नहीं करना चाहिए, झूठ नहीं बोलना चाहिए, निर्धनों को सताना नहीं चाहिए तथा हिंसा व दुराचार नहीं करना चाहिए, किन्तु ये सब बातें जानते हुए भी इन्हें आचरण में लोग कहां उतारते हैं । “क्षमा परमो धर्मः" का नारा सब लगाते हैं। तथा सम्वत्सरपर्व पर सब जबान से क्षमत-क्षमापना भी कहते हैं किन्तु क्षमा करने का जब सही अवसर आता है तब कौन उस पर अमल करता है ? बहुत कम, विरले ही कोई ऐसा कर पाते हैं ।
अभय दान देना !
मध्य भारत नीमच में सेठ गंगाराम जी की धर्मपत्नी केसरबाई ने चार पुत्रों को जन्म दिया था । उन चारों में से एक पुत्र को जुआ खेलने की लत पड़ गई थी ।
एक बार जुए में हार जाने के कारण वह जुआरी पुत्र अपनी माता केसरबाई के गहने चुराकर ले गया और अपने अन्य तीन साथियों के साथ किसी अन्य शहर को रवाना हो गया । किन्तु उसके साथियों की नीयत बिगड़ गई और उन तीनों ने 'रेवाड़ी' नामक स्टेशन के समीप उसे मार डाला तथा आपस में गहनों का बटबारा करके घर लौट आए ।
किन्तु एक कहावत है कि- 'पाप सिर पर चढ़कर बोलता है ।' वही हुआ। तीनों जुआरियों में से एक का अपनी पत्नी से गहनों के कारण झगड़ा हो गया और स्त्री ने ऊँचे स्वर से कहा – “यह गहना तुम्हारा नहीं है, सेठ गंगाराम का है जिसके पुत्र को तुम लोगों ने धोखे से मार डाला है ।"
स्त्री की बात किसी पड़ोसी ने सुनली और थाने में रिपोर्ट कर दी । फलस्वरूप तीनों हत्यारे पकड़े गए और उनसे समस्त आभूषण लेकर थाने में जमा कर लिये गये ।
पत्पश्चात् गंगारामजी को कोर्ट में बुलवाया गया तो उन्होंने जेल से पूर्व अपनी पत्नी केसरबाई से बयान देने के विषय में सलाह ली कि क्या किया जाय ? धर्म-परायणा केसरबाई ने सोच विचार कर पति से कहा - "अच्छा यही होगा
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