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भव - पार करानेवाला सदाचार
धर्मप्रेमी बंधुओ, माताओ एवं बहनो !
इस संसार में मानव शरीर तो करोड़ों व्यक्तियों को मिला हुआ है और सदा मिलता भी रहेगा । किन्तु सच्चा मानव वही कहलाता है और कहलाएगा जिसके जीवन में सदाचार की सौरभ होगी । सदाचार के अभाव में मानव जीवन का तनिक भी मूल्य नहीं रह जाता और मानव के लिए सर्वोत्तम पर्याय पाना भी न पाने के समान ही हो जाता है । सदाचारों की सुगंध मे समन्वित मनुष्य सर्वत्र सबका प्रिय एवं आकर्षण का केन्द्र बन जाता है और इसके विपरीत दुराचारी व्यक्ति पग-पग पर लांछित, अपमानित और दुनिया की निगाहों में घृणित बनता है । कोई भी व्यक्ति ऐसे मनुष्य से संपर्क रखना पसन्द नहीं
करता ।
श्री उत्तराध्ययन सूत्र में बताया भी गया -
जहा सुणी पूइकन्नी, निवकसिज्जई सव्वसो । एवं दुस्सील पडिणीए, मुहरी निक्कसिज्जई ॥
अर्थात्–सड़े कानों वाली कुतिया जहां भी जाती है वहां से दुत्कार कर निकाल दी जाती है, उसी प्रकार दुःशील, उद्दण्ड एवं मुखर यानी वाचाल व्यक्ति भी सर्वत्र धक्के देकर निकाल दिया जाता है ।
वास्तव में ही जिस प्रकार आभूषणों की कीमत उसकी पेटी से नहीं होती, मूल्य से होती है और तलवार की कीमत उनके म्यान से न होकर स्वयं उसके पानी से होती है, उसी प्रकार मानव जीवन की कीमत उसके मानव शरीर से नहीं, अपितु उसमें रहे हुए सर्वश्रेष्ठ गुण सदाचार से होती है । अगर उसमें
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