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________________ का ज्ञान प्राप्ति का साधन : विनय धर्मप्रेमी बन्धुओ, माताओ एवं बहनो ! कल हमने ज्ञान-प्राप्ति के पांचवें कारण 'पंडित पुरुषों की संगति' के विषय में प्रवचन किया था। आज छठे कारण विनय को लेना है। ध्याकरण शास्त्र के अनुसार बिनय शब्द में 'वि' उपसर्ग है । उपसर्ग बाईस होते हैं जिनमें से 'वि' एक है । विनय शब्द में से 'वि' को हटा दिया जाय तो नय रह जाता है। नय शब्द का अर्थ भी आपको जानना चाहिये । 'निज' एक धातु है इसका अर्थ है-प्राप्ति करना । इसी से नय बनता है और उसका अर्थ भी प्राप्ति करना होता है । अब रहा 'वि' उपसर्ग । इसे नय के पहले लगा देने से विनय हो जाता है तथा अर्थ निकलता है--विशेष रीति से । विनय के लिये भगवान् ने चार मूल सूत्र कहे हैं- उत्तराध्ययन, दशवकालिक, नंदी सूत्र एवं अनुयोगद्वार सूत्र । जानने की जिज्ञासा होती है कि इन चारों सूत्रों को ही मूल सूत्र क्यों कहा गया है जबकि और भी अनेक सूत्र विद्यमान हैं ? इसका समाधान यही है कि ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप, ये चारों जो कि मोक्ष के मुख्य साधन हैं इनका विवेचन इन चारों शास्त्रों में किया गया है । अतः इन चारों मूल सूत्रों का गम्भीर अध्ययन करके मुमुक्षु प्राणी मोक्ष के शान, दर्शन, चारित्र एवं तप-रूप साधनों को अपना सकता है । 'नन्दी सूत्र' में ज्ञान का विशद् वर्णन है। यह भी कहा जा सकता है कि इस सूत्र में ज्ञान का जितना अधिक स्पष्टोकरण है, उतना अन्य किसी भी सूत्र में नहीं है। ___ज्ञान के पश्चात् दर्शन आता है । दर्शन यानी श्रद्धा । दूसरे सूत्र 'अनुयोग द्वार' में श्रद्धा की दृढ़ता के विषय में बताया गया है तथा हमारे सिद्धान्तों की क्या मान्यताएँ हैं ? सात नय क्या हैं ? उनका स्वरूप क्या है, इन सभी का स्पष्टीकरण भी इसी सूत्र में किया गया है । मोक्ष का तीसरा साधन है चारित्र । चारित्र का विस्तृत विवेचन 'दशवैकालिक सूत्र' में पाया जाता है । साधु को किस प्रकार रहना चाहिये ? कैसे Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004006
Book TitleAnand Pravachan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1983
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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