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________________ प्रकाशकीय श्रमण संघ के द्वितीय पट्टधर परमश्रद्धेय आचार्य श्री आनन्दऋषिजी म० सा० के प्रवचनों का संग्रह पाठकों में लोकप्रिय होता जा रहा है, अध्यात्मरसिक जिज्ञासुओं में उसकी माँग बढ़ती जा रही है--यह अत्यन्त प्रसन्नता का विषय है। आचार्य श्री की प्रवचन माला का योजनाबद्ध प्रकाशन हमने गत वर्ष ही प्रारम्भ किया था। इसकी मूल प्रेरणा तो हमें जिज्ञासु पाठकों से ही मिली, उसी से प्रभावित होकर आचार्य श्री के अंतेवासी एवं सुयोग्य शिष्य श्री कुन्दनऋषि जी ने प्रवचन-प्रकाशन की भावना विगत खुशालपुरा चातुर्मास में श्रावक संघ के समक्ष व्यक्त की । वहाँ के उत्साही श्रावक संघ ने इन प्रवचनों के संकलन एवं सम्पादन-प्रकाशन में उचित उत्साह प्रदर्शित किया और यह कल्पना साकार रूप लेने लगी । अल्पसमय में ही "आनन्द प्रवचन" के दो भाग प्रकाशित हो गये और यह तृतीय भाग आपके समक्ष है। प्रवचनों का संपादन बहन कमला जैन 'जीजी' ने बड़ी ही कुशलता तथा शीघ्रता के साथ किया है । इनके प्रकाशन में भी अनेक सद्गृहस्थों ने सहयोग प्रदान किया है (जिनकी शुभ नामावली अगले पृष्ठों पर अंकित है) साथ ही श्रीयुत श्रीचन्द जी सुराना 'सरस' ने इनको सुन्दर व शीघ्र मुद्रित कराकर पुस्तकाकार रूप दिया है। पंडितरत्न श्री विजयमुनि जी शास्त्री ने इसका आदि वचन लिखकर पुस्तक के गौरव में चार चाँद लगा दिये हैं । इन सबके उदार सहयोग के प्रति हम कृतज्ञ हैं। द्वित्तीयावृत्ति के प्रकाशन प्रसन्नता की बात है कि पूज्य आचार्य श्री के प्रवचनों को जैन-अजैन जनता ने हृदय से अपनाया है । तृतीय भाग की प्रतियाँ समाप्त हो जाने पर श्री जैन भारती प्रकाशन के संचालक श्री प्रेमभूषण जी जैन ने अपनी देख-रेख में इसका पुनर्मुद्रण अल्प समय में कराया है, जिसके लिए हम हृदय से इनके अत्यन्त आभारी हैं। मन्त्री श्रीरत्न जैन पुस्तकालय, वुरुडगाँव रोड, अहमदनगर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004006
Book TitleAnand Pravachan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1983
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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