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विजयदशमी को धर्ममय बनाओ !
चाहिए क्योंकि जिस प्रकार बादल की छाया हवा से हट जाते ही मिट जाती है, उसी प्रकार धन व यौवन भी अल्पकाल में ही विलीन हो जाते हैं ।
तो गर्व अथवा अहंकार मिथ्या मोहनीय का दूसरा पुत्र है जो अपने समय में तो किसी को भी कुछ नहीं समझता तथा गर्दन टेढ़ी करके ही चलता है। किन्तु अल्पकाल में ही उसका गर्व चूर-चूर हो जाता है ।
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रावण की एक बहन थी, जिसका नाम च द्रनखा था किन्तु सूप के समान बड़े-बड़े नाखून होने के कारण उसे शूर्पनखा भी कहते थे । शूर्पणखा ने ही अपने भाई रावण को कुबुद्धि प्रदान की थी यह कहकर कि -- " तुम्हारे अन्तःपुर में इतनी रानियाँ हैं पर आज मैं जिसे देखकर आई हूँ उसके सामने ये सब कुछ भी नहीं हैं ।" बहन के कथन के कारण हो रावण ने सीता का हरण किया और उसे निर्बंश हो जाना पड़ा ।
इसी प्रकार मिथ्या मोह की बहन कुबुद्धि है जो प्राणी को कुमार्ग पर चला कर कुगति प्रदान करवाती है । कुबुद्धि ऐसा क्यों करती है ? क्योंकि उसका विवाह क्रोध-रूपी खर के साथ हो जाता है । दोनों का संयोग मिलने से ही भयंकर घटनाएँ घटती हैं ।
खर के दो भाई थे --दूषण और त्रिशिरा । क्रोध रूपी खर के भी दो भाई हैं-- पहला दूषण अर्थात् अवगुण और दूसरा त्रिशिरा रूप तीन शल्य - माया शल्य यानी कपट, नियाणशल्य यानी निदान करना कि मेरी अमुक करनी का अमुक फल मिले । तोसरा मिथ्यादर्शन शल्य अर्थात् गलत श्रद्धा रखना ।
खर के एक पुत्र था शंबुक । एक बार वह अपने मामा रावण के यहाँ गया तो वहाँ पर उसने सूर्यहंस खड्ग को देखा । देखकर उसके हृदय में अमिट इच्छा हुई कि मुझे भी सूर्यहंस खड्ग प्राप्त करना है । कवि ने उसके विचारों को अपने पद्य में लिखा है-
ज्ञान रूप सूर्य हंस खडग के साधन की दिल में आई । मात-पिता का हुक्म न माना रह्या वो उपशम बन माँई ॥ उसी बखत में रामराज गृहि दश लक्षण दशरथ राया । संवर भावना राणी कौशल्या धर्म राम पुत्र जाया || समकित सुमित्रा रानी दूसरी, सत लक्ष्मण की महतारी । धर्म दशहरा ॥ ४ ॥
शंबूक के हृदय में सूर्य हंस खड्ग को प्राप्त करने की बलवती इच्छा हुई
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