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वमन की वाञ्छा मत करो
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प्रेम सच्चा हो या न हो, मात्ता का प्रेम झूठा नहीं होता । वह प्राण देकर भी अपने पुत्र की रक्षा करती है । किन्तु दूसरे ने इस बात को नहीं माना और वह कहने लगा - "नहीं माता भी समय आने पर अपने पुत्र को छोड़कर अपने प्राण बचाती है ।" पर पहले पंडित ने अब इस बात को नहीं माना तो दूसरे ने कहा मैं प्रत्यक्ष बताता हूँ ।
उसने दो होज खुवाए । एक हौज में पानी भरवा दिया और दूसरे कोसं खाली रखा । किन्तु खाली हौज में दूसरे हौज का पानी आ सके ऐसा छेद करवा लिया । खाली होज में एक बंदरिया और उसके बच्चे को रख दिया । उसके पश्चात् भरे हुए हौज का छेद खोल दिया जिससे धीरे-धीरे पानी खाली होज में आने लगा ।
जब पानी थोड़ा भरा और बच्चा उसमें डूबने लगा तो बंदरिया ने अपने बच्चे को ऊपर उठा लिया किन्तु जब और पानी बढ़ा और स्वयं बन्दरिया डूबने लगी तो उसने बच्चे को छोड़ दिया और स्वयं उछलकर अपनी जान बचाने की कोशिश करने लगी ।
सभी के प्रेम को स्वार्थमय बताने वाले पंहित ने कहा - "देखो, अपनी जान बचाने के लिए इस बन्दरिया ने माता होकर भी अपने बच्चे को छोड़ दिया है और अपनी जान बचाने की कोशिश कर रही है । मदा ऐसा ही होता है । घर में आग लग जाती है तो मां-बाप भी दोड़कर बाहर आ जाते हैं और फिर चीखते हैं- "हमारा बच्चा तो अन्दर ही रह गया, बचाओ उसे "
इस प्रकार महापुरुष संसारी संबन्धियों के स्वार्थ का दिग्दर्शन कराते हैं, पर फिर भी मन के न चेतने पर उसकी भत्र्त्सना करते हुए कहते हैं
मन मूरख अजहूं नहिं समझत, सिख दे हार्यो नीत । जगत में झूठी देखी प्रीत !
अर्थात् – अरे मूर्ख मन ! तू थोड़ा तो समझ । नाना प्रकार की नीति पूर्ण शिक्षाएँ दे देकर मैं थक गया पर अभी भी तुझे अकल नहीं आई । तू कैसा है ? जगत का व्यवहार देख-देखकर भी सावधान नहीं होता अपना पेट तो पशु भी भर लेता है पर दिमाग से काम नहीं लिया तो फिर तू इन्सान कैसा ? तीन प्रकार के मनुष्य
मनुष्य को अगर श्रेणियों में विभक्त किया जाय तो तीन प्रकार से किया जा सकता है । प्रथम श्रेणी का मनुष्य पशुवत् होता है जैसे हमाल । हमाल अर्थात् कुली । कुली दिन भर पशु के समान बोझा ढोता फिरता है और उनसे चन्द पैसे पाकर पेट भर लेता है । वह चिन्तन-मनन नहीं कर पाता क्योंकि
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