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आत्म-साधना का मार्ग
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"भाई प्रतिलेखन कर लेना।" उसने ज्योंहि दरी और चद्दर का प्रतिलेखन किया, एक बहुत बड़ा और काले स्याह रंग का बिच्छू चद्दर में से निकलकर भागा। ___ सारांश यही है कि वस्त्रों में जीव जन्तुओं का आकार छिप जाना कोई बड़ी बात नहीं है । आप गृहस्थों को भी अनुभव होगा कि बहुत दिनों से बन्द पड़ी पेटियों में गद्दे रजाइयों में और खाने-पीने की वस्तुओं में भी अनेक प्रकार के जीव उत्पन्न हो जाते हैं । इसीलिये आदान भांड निक्षेपणा समिति के द्वारा अनेक प्राणियों की हिंसा से बचने का निर्देश दिया है।
(५) पांचवीं समिति कहलाती है-'उत्सर्ग समिति ।' और तनिक विस्तार से कहा जाय तो इसका पूरा नाम है-"उच्चार प्रश्रवण खेल सिंघाण जल्ल परिष्ठापनिका समिति । इसका अर्थ भी एक श्लोक के द्वारा बताया गया है--
कफमूत्रमल प्रायं, निर्जन्तुजगतीतले ।
यत्नाघदुत्सृजेत्सा:धुः सोत्सर्गसमितिवेत् ।। __ कफ, मूत्र, मल जैसी वस्तुओं का जीव-जन्तुओं से रहित पृथ्वी पर यतना के साथ मुनि त्याग करते हैं । यही उत्सगं समिति है।
बन्धुओ, आशा है अप इन पांचों समितियों के विषय में भली-भांति समझ गये होंगे। पर साथ ही यह भी आपको समझ लेना चहिये कि इनका पालन केवल मुनियों को ही करना चाहिये यह बात नहीं है । अनेक प्रकार की हिंसा से बचने के लिये जो ये पांच प्रकार के विधान बनाये गये हैं ये श्रावकों के लिये भी उतने ही आदरणीय हैं जितने श्रमणों के लिये। इसलिये प्रत्येक गृहस्थ को भी इन समितियों को ध्यान में रखते हुए इनके पालन करने का पूर्ण प्रयत्न करना चाहिये । क्योंकि हिंसा के पाप का भागी बनने से तो प्रत्येक प्राणी को बचना चाहिये।
विशेष तौर से हमारी बहनें जो रसोई बनाती हैं, उन्हें अधिक से अधिक उपयोग और विवेक रखने की आवश्यकता है। उन्हें ध्यान रखना चाहिये कि जूठे बर्तन घण्टों या कि सुबह से शाम तक और शाम से सुबह तक वैसे ही न पड़े रहें, अन्यथा उनमें अनेकों मक्खियाँ और मच्छर गिरेंगे तथा उनके मरने से महान् पाप उनकी आत्मा को भोगना पड़ेगा। इसी प्रकार शाक-सब्जी के छिलके वगैर भी बड़ी सावधानी से और साफ जगह में डालने चाहिये ताकि प्रथम तो अधिक गन्दगी के कारण उनमें कीटाणु उत्पन्न न हो जायें तथा असावधानी ये खिड़कियों और छज्जों पर से उन्हें फेंकने में किसी व्यक्ति पर
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