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असार संसार
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वह पहलू में बैठे हैं और बदगुमानी,
लिये फिरती मुझको कहीं का कहीं है । शायर का कहना है--खुदा तो मेरे दिल के अन्दर ही छिपा बैठा है पर मेरी नासमझी उसे पाने के लिये न जाने कहाँ-कहाँ भटकाती है ।
बात एक ही है । आत्मा ही अपने शुद्ध स्वरूप में परमात्मा है तथा आत्मा में ही अनंत सुख और अनंत शांति विद्यमान है । इसलिये बाहर परमात्मा की तथा सच्चे सुख की खोज करना वृथा है। सच्चा सुख तभी प्राप्त हो सकेगा जब हम संसार के सभी पदार्थों को क्षणभंगुर मानकर आत्मा में रमण करेंगे।
और ऐसा तभी होगा जब कि हम संसार को असार समझ लेंगे। हमारी यह दृष्टि ही सम्यक्ज्ञान का मुख्य लक्षण साबित हो सकेगी। दूसरे शब्दों में संसार को असार समझ लेने पर ही हमारी बुद्धि सच्चे ज्ञान से मेल खाएगी और हमारे कदम साधना के राजमार्ग पर अडिग रूप से बढ़ सकेंगे। *
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