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भद्रबाहु-चाणक्य-चन्द्रगुप्त कथानक
[१६] Ācārya Bhadrabahu leaves for Heavenly abode. Ācārya Visakhanandin reaches Cola country ( in South
India) with his Samgha.
तहिं सावयजण पवर जि णिवसहिं दाण-पूय-विहि ते णिरु पोसहिं। एक्कहिँ घरि मइँ अन्ज जि मुत्तउ सुयकेवलि ति णिसुणिवि वुत्तउ । भव्वु-भव्वु संजाउ गुणायर हुवउ णिसल्लु हउँमि वयसायर। दिणि-दिणि जाइवि तह मुंजेव्वउ णियसत्तिए उववासु करेव्वउ । 5 एण विहाणे सो तहिँ णिवसइ घोरतवेण सदेहु किलेसइ ।
भहबाहु चेयणि झाएप्पिणु धम्मज्झाण पाण-चएप्पिणु । गउ सुरहरि रिसि सुयकेवलि तासु कलेवरु ठविउ सिलायलि । गुरुहुँ पाय गुरुभित्तिहिँ लिहियइँ णियचित्तंतरम्मि स णिहियई। चंदगुत्ति संठिउ सेवंतउ गुरुहुँ विणउ तियलोयमहंतउ
घत्ता10 आयरिउ विसाहणंदि सवणे चोल-देसि गउ संघ-जुउ ।
एत्तहिँ पाडलिपुरि जे जि ठिया तत्थ अईव दुक्कालु हुउ ॥१६॥
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