________________
परिशिष्ट : ५
टिप्पणियाँ [ध्यातव्य-मूल शब्द के साथ कहवक एवं पंक्ति संख्या दी गयी है ]
११ पंचमुणीसर (पंचमुनीश्वर )-तिलोयपण्णत्ति (गाथा १४८२-८४ ) के अनुसार भगवान् महावीर के परिनिर्वाण के बाद उनके तीर्थकाल में नन्दि, नन्दिमित्र, अपराजित, गोवर्धन एवं भद्रबाहु ( प्रथम ) ये पांच महामुनीश्वर हुए, जो श्रुतकेवली (श्रुत-आगमशास्त्रों के अखण्ड रूप से ज्ञाता) माने गये हैं। इन्द्रनन्दि (१०-११वों सदी ई०) कृत श्रुतावतार नामक ग्रन्थ तथा नन्दिसंघ की पट्टावली में इनका पृथक्-पृथक् काल इस प्रकार दिया गया है :
(१) नन्दि (-अपर नाम विष्णुनन्दि अथवा विष्णु )-१४ वर्ष (२) नन्दिमित्र
१६ वर्ष (३) अपराजित
२२ वर्ष (४) गोवर्धन
१९ वर्ष ( ५ ) भद्रबाहु (प्रथम)
२९ वर्ष
कुल-१०० वर्ष उक्त पंचमुनीश्वरों के पूर्व एवं वीर-निर्वाण ( ई० पू० ५२७ ) के बाद तीन केवली हुए-(१) गौतम गणधर, (२) सुधर्मा स्वामी ( अपरनाम लोहाचार्य या लोहार्य ) एवं (३) जम्बूस्वामी । इन तीनों का काल क्रमशः १२, १२ तथा ३८ ( कुल जोड़ ६२ ) वर्ष माना गया है । तात्पर्य यह कि भ० महावीर के परिनिर्वाण के बाद १६२ वर्षों में उक्त ३ केवली एवं ५ श्रुतकेवली हुए।
११२ भद्दबाहु ( भद्रबाहु प्रथम)-जैन-परम्परा के अन्तिम श्रुतकेवली । आचार्य हरिषेण (१०वीं सदी ईस्वी) कृत बृहत्कथाकोष के अनुसार भद्रबाहु पुण्ड्रवर्धन-देश के निवासी एक ब्राह्मण के पुत्र थे। बृहत्कथाकोष [ हरिषेणकृत ], पुण्याश्रव कथाकोष [ रामचन्द्र मुमुक्षुकृत ], कहकोसु [श्रीचन्द्रकृत ] एवं आराधना कथाकोष [ नेमिचन्द्र कृत ] में एक कथा के रूप में तथा भद्रबाहु चरित [ रत्ननन्दी कृत ] में एक स्वतन्त्र परित-काव्य के रूप में इनका जीवनचरित वर्णित है।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org