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________________ नैष्ठिकाचार २०५ सभी व्रत का पालन एकमात्र महान् परमधर्म अहिंसा व्रत के पालन के लिए ही किया जाता है। असत्य, चौर्य, कुशील और परिग्रह ये चारों हिंसामूलक कार्य हैं। हिंसामूलक होने से ही इनकी पाप संज्ञा पड़ी है। रागादिपरिणामों के द्वारा आत्मस्वभाव का हनन ही हिंसा है। इस निमित्त से राग, द्वेष, क्रोध और लोभ इनको हिंसा का पर्यायवाची कहते हैं। इन दुर्गुणों के कारण ही असत्य भाषण चौर्य और कुशील आदि पाप होते हैं, अतः इनके त्यागरूप व्रतों से एक अहिंसा परमधर्म की ही प्रभावना होती है। ऐसा करनेवाले महानुभाव गृही ही द्वितीय प्रतिमा के आराधक हैं ऐसा जानना चाहिये। १६३।१६४ प्रश्न:- अणुव्रतानि हि कानि सन्ति गुणव्रतानि वा। वद शिक्षाव्रतानीति ज्ञातुमिच्छामि तत्त्वतः।। हे गुरुदेव! अणुव्रत क्या हैं, कौन हैं तथा गुणव्रत और शिक्षाव्रत कौन हैं? मै उनका यथार्थ स्वरूप जानने की इच्छा करता हूँ, कृपाकर कहें (अनुष्टुप्) अहिंसा सत्यमस्तेयं परदारविवर्जनम् । परिग्रहपरित्यागः ज्ञेयान्यणुव्रतानि हि ।।१।। दिग्देशविरती चैवाऽनर्थदण्डव्रतं तथा । गुणव्रतानि चैतानि गुणवृद्धेस्तु हेतुतः ।।२।। सामायिकोपवासौ तु व्रतं भोगोपभोगयोः । वैयावृत्यं च चत्वारि नित्यं शिक्षाव्रतानि तु ।।३।। श्रावकाणां व्रतान्येतान्यथ विस्तारतस्तथा । वक्ष्येऽहं क्रमतोऽग्रे हि सावधानतया शृणु ।।४।। कलापकम्।क्षेपकम्। अहिंसेत्यादि:- अहिंसाव्रतं सत्यव्रतं अस्तेयव्रतं परदारविवर्जनं स्वीकृतपरिग्रहस्य परिमाणञ्चेति पञ्चाणुव्रतानि भवन्ति। दिशासु गमनागमनविरतिरूपा दिग्विरतिः। तदन्तर्गतदेशेषु पुनरपि अल्पकालीना गमनागमनविरतिरूपा देशविरतिः। स्वीकृतेष्वपि विषयेषु यदनावश्यकं, तस्य परित्यागोऽनर्थदण्डविरतिः। एतानि त्रीणि गुणव्रतानि सन्ति। त्रिकाले समताभ्यासरूपं सामायिकव्रतं, पर्वणि प्रोषधोपवासः, स्वीकृतेष्वपि भोगोपभोगेषु यथावश्यकं परिहाररूपं भोगोपभोगपरिमाणं, वैयावृत्यञ्च इति चत्वारि शिक्षाव्रतानि सन्ति। एतानि द्वादशसंख्यकानि एकदेशविरतिरूपत्वात् श्रावकस्य व्रतानि सन्ति। एतेषां विस्तरतः स्वरूपं क्रमशोऽग्रे वक्ष्यते। तत् सावधानतया शृणु।१।२।३।४। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004002
Book TitleShravak Dharm Pradip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaganmohanlal Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1997
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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