________________
૧૮૮
श्रावकधर्मप्रदीप
पर नियम का पालन नहीं हो संकने से परम्परा व मण्डप बन्धन की पद्धति रुक जा सकती है। सर्वसाधारण को यह बोध होगा जो अमुक व्रती पुरुष मण्डप बन्धन नहीं करता तो मालूम होता है जो यह कोई आवश्यक परम्परा या पद्धति नहीं है। अतः परम्परा में नियम का घात न हो ऐसा विचार कर श्रावक को इन स्थानों पर मण्डप बन्धन करना ही चाहिए। १४६।
प्रश्न:-कौ मौनधारणं क्व क्व कार्य मे सिद्धये वद।
श्रावक को मौन धारण करना भी आवश्यक सुना गया उसे किस किस अवसर पर मौन धारण करना चाहिए, कृपा कर कहें
(अनुष्टप्) भोजने मैथुने स्नाने मल-मूत्रविमोचने । सामायिकेऽर्चने दाने वमने च पलायने ।।१४७।। सन्मौनधारणं कार्यं धर्मज्ञैः श्रावकैः सदा। यतः स्यात् सर्वकार्येषु शान्तिः सिद्धिर्निजाश्रिता ।१४८।।युग्मम्।।
भोजन इत्यादि:- श्रावकेण एतेषु दशसु कार्येषु मौनधारणं कर्त्तव्यम् । भोजनकार्ये-मैथुनेसेवनेस्नानकार्ये-मलत्यागे-मूत्रविसर्गे-सामायिककरणे-भगवत्पूजनादौ-यज्ञकार्ये-दानकरणसमये-वमने पलायने च। सावधानतया जीवरक्षाविचारेण उक्तकार्याणि सम्पादनीयानि। अन्यमनस्कतया भोजनादिकरणे मैथुनादिकरणे मलमोचने वमने वा शारीरिकहानिः स्यात् । तद्वत् अन्यमनस्कतया सामायिकादौ क्रियमाणे च यदर्थं तत्क्रियते न तस्य सिद्धिः स्यात् । पलायने च वाग्व्यापारे क्रियमाणे शक्तिह्रासो भवति। कस्मात् सिद्ध्यर्थी शान्त्यर्थी च उक्त कार्येषु मौनं कुर्वीत। १४७।१४८।
भोजन, मैथुन, स्नान, मलत्याग और वमन आदि शारीरिक कार्यों में तथा पूजन, यज्ञ, हवन, सामायिक और दान आदि पारमार्थिक कार्यों में और कार्यवशात् यदि पलायन याने वेग से गमन करना पड़े दौड़ना पड़े भागना पड़े तो उस अवसर में ऐसे दस मौकों पर धर्मात्मा श्रावकों को सदा मौन धारण करना चाहिए। ये कार्य जीवरक्षा के ध्यान से तथा शान्तिपूर्वक उक्त कार्यों को पूरा करने के अभिप्राय से तथा धार्मिक कार्यों में शुभ परिणामों की सिद्धि के लिए मौन पूर्वक ही किए जाने चाहिए।
यहाँ पर मौन से तात्पर्य इस बात का है कि जो काम स्वयं अकेले के करने के है वहाँ तो सर्वथा मौन रखे। जहाँ पर अपने सिवाय दूसरे व्यक्तियों का भी सहयोग आवश्यक है वहाँ उस व्यक्ति के सिवाय अन्य किसी से बातचीत न करे। संबंधित व्यक्ति
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org