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स्वयम्भूस्तोत्र-तत्त्वप्रदोपिका स्याद्वाद और सप्तभंगी को सुनिश्चित व्यवस्था : आचार्य समन्तभद्रके पहले आगममें
सिया अस्थि दब्वं सिया णत्थि दव्वं इत्यादि रूपसे स्याद्वाद और सप्तभंगीका उल्लेख अवश्य मिलता है। किन्तु उसकी निश्चित व्याख्या, नित्यकान्त, अनित्यैकान्त, भावैकान्त, अभावकान्त आदि अनेक एकान्तोंमें सप्तभंगीका प्रयोग तथा युक्तिके बल पर वस्तुको अनेकान्तात्मक सिद्ध करना समन्तभद्रकी महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है । जीवादि प्रत्येक वस्तु अनन्तधर्मात्मक है और उन अनन्त धर्मोंका प्रतिपादन स्याद्वादके द्वारा किया जाता है । आचार्य समन्तभद्रने बतलाया है कि प्रत्येक वस्तुमें सत्, असत्, उभय और अनुभय ये चार कोटियाँ ही नहीं हैं, किन्तु सदवक्तव्य, असदवक्तव्य और सदसदवक्तव्य इन तीन कोटियों को मिलाकर कुल सात कोटियाँ हैं। इन्हीं सात कोटियों को सप्तभंगी कहते हैं । सत्, नित्य आदि प्रत्येक धर्मका प्रतिपादन उसके प्रतिपक्षी धर्मकी अपेक्षासे सात प्रकारसे किया जा सकता है। यतः वस्तुमें अनन्त धर्म हैं, अतः उन अनन्त धर्मोकी अपेक्षासे प्रत्येक वस्तुमें अनन्त सप्तभंगियां बन सकती हैं। अनेकान्तमें अनेकान्त की योजना : ___ सर्वप्रथम आचार्य समन्तभद्रने ही अनेकान्तमें भी अनेकान्तकी योजना की है। उन्होंने बतलाया है कि जिस प्रकार जीवादि प्रत्येक वस्तु अनेकान्तात्मक है उसी प्रकार अनेकान्तमें भी अनेकान्त पाया जाता है । अर्थात् अनेकान्त सर्वथा अनेकान्त नहीं है, किन्तु कथंचित् एकान्त और कथंचित् अनेकान्त है । जब प्रमाणदृष्टिसे समग्र वस्तु का विचार किया जाता है तब वह अनेकान्त कहलाता है और जब नयदृष्टिसे वस्तुके किसी एक धर्मका विचार किया जाता है तब वही एकान्त हो जाता है । तात्पर्य यह है कि अनेकान्त प्रमाण की अपेक्षासे अनेकान्त है और नयकी अपेक्षासे एकान्त है । इस प्रकार अनेकान्तमें भी अनेकान्तात्मकता सिद्ध होती है। सर्वोदय तीर्थ :
वर्तमान समयमें सर्वोदयका नाम बहुत सुना जाता है । गाँधीयुगमें भी सर्वोदय १. सिय अत्थि णत्थि उहयं अव्वत्तव्वं पुणो य तत्तिदयं । दव्वं खु सत्तभंगं आदेसवसेण संभवदि ॥
-पञ्चास्तिकाय गाथा १४ २. अनेकान्तोऽप्यनेकान्तः प्रमाणनयसाधनः ।
अनेकान्तः प्रमाणात्ते तदेकान्तोऽपितान्नयात् ॥-स्वयम्भूस्तोत्र
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