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________________ श्री नमि जिन स्तवन १५९ रहित है तथा वस्त्रादिके आवरणसे रहित है। अर्थात् नग्न दिगम्बर मुद्राका धारक है। इसके साथ ही शरीर की स्पर्शनादि पाँचों इन्द्रियाँ तथा मन शान्त हो गये है । अर्थात् अपने-अपने विषयों की अभिलाषासे सर्वथा निवृत्त हो गये हैं। अतः श्री नमि जिनने अपनी इन्द्रियोंपर पूर्ण विजय प्राप्तकर ली है। इस प्रकारका श्री नमि जिनका शरीर यह प्रकट करता है कि उन्होंने कामदेवके बाणोंसे होनेवाली चित्तकी पीडाको अथवा प्रतिकार रहित व्याधिको जीत लिया है । संसारी मनुष्य कामके द्वारा उत्पन्न होनेवाले विकारको वस्त्रादिके आवरणसे छिपा लेता है। श्री नमि जिन तो नग्न दिगम्बर मुद्राके धारक हैं । उनके पास काम विकारको छिपानेका कोई साधन नहीं है। इससे यही सिद्ध होता है कि उन्होंने कामके विकारपर पूर्ण विजय प्राप्त कर ली है। इसके साथ ही उन्होंने मनोविकार पर भी विजय प्राप्त कर ली है। क्योंकि जब पाँचों इन्द्रियाँ अपने-अपने विषयोंसे निवृत्त हो जाती हैं तब उनके द्वारा होनेवाला मनोविकार भी स्वतः समाप्त हो जाता है। संसारी प्राणी क्रोधके वशीभूत होकर नाना प्रकारके अनर्थ करते हैं । वे भयंकर शस्त्रों द्वारा अपने शत्रुका नाश करके अपने क्रोधको शान्त करते हैं। किन्तु श्री नमि जिनने भयंकर शस्त्रोंके बिना ही निर्दय हृदय क्रोधको जीत लिया है। क्रोधका हृदय निर्दय होता है । इसीसे उसे किसीपर दया नहीं आती है । क्रोधके आवेशमें यह प्राणी आत्महत्या, परहत्या आदि अनेक प्रकारके अनर्थ करता रहता है । ऐसे भयंकर क्रोधको शस्त्रोंके बिना जीतना सरल नहीं है। फिर भी श्री नमि जिनने शस्त्रोंके बिना ही क्रूर क्रोधको जीत लिया है। इससे सिद्ध होता है कि श्री नमि जिन निर्मोह हैं । काम तथा क्रोधको उत्पन्न करनेवाला मोह ही है। काम तथा क्रोधपर पूर्ण विजय प्राप्त कर लेने के कारण श्री नमि जिन निर्मोह हैं और इसीलिए वे शान्तिके निलय हैं । वे सकल कर्म प्रक्षयरूप अथवा मुक्तिरूप शान्तिके स्थान हैं। ऐसे श्री नमि जिन हमारे शरणभूत हैं । हम भी निर्मोह होना और शान्ति को प्राप्त करना चाहते हैं। इसी कारण हमने श्री ममि जिन की शरण ली है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004001
Book TitleSwayambhustotra Tattvapradipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1993
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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