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स्यापित पीर सं. २४७० संस्थापक व संरक्षक
. . पूज्यपाद श्री १५ तुम्लक
श्री दिगंबर जैन शांतिनिकुंज पं: गणेशप्रसादजी वर्णी
(उदासीन भागम)
जौहरीयाग, सागर म०प्र० _ न्यायाचार्य पत्र नं० तिथि..................वोरनिर्वाणाम्ब वा..........
श्रीपत महानायलमछली पालीमोग्य दान नि:पर उताया समाजाने- महोयाजोगमको वृत्तिके अमिलन बास्तूची माफिलिखा
रामगगनेमापो सेययोंगावत कामा उarma जिदे प्रस्तासिकास- आप पानी
देखें -ललितपुर की ओर जाना यान्त भर किस प्ररणा नहीं खर जावेग- जिस तरी जाना हा नहीं- अन सारीरिक बनना इस प्रोग्य से जो कोई कार्य का गर-गोविन्जन मानन बिता भगवान से बात नहीं करते हम ती वस्तु टीकालोकिक मठयों में हमामा-गए- हम तो पल्ले भगह मोटी जीव मात्र इस बीग से पीडित है-महो ३ जवानी पस्त की मर्यादा यही -पोवकारी शब्द का पट्टार चल पडा- संसारी मात्र स्वाहेश्य से ही स्वकीया प्रवृत्ति केवते - ससार में पाएमा प्रशंसा का रोग इतना व्याप्त है जो इससे भले होला महाग दुल है मेरा तो विश्वास है पपाय विद ही इससे मार
भा. १४.infan
श्री पं0 फूलचन्द्र जी शास्त्री को पू0 वर्णी जी द्वारा लिखित एक पत्र। पू0 वर्णी जी ने अपने नाम के आगे छपी सभी उपाधियाँ काट रखी हैं।
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