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वर्णी-वाणी
१२. संसार में जितने व्यापार हैं वे सब मनोबल पर अवलम्बित हैं । मनोबल ही बल है । इसके बिना में सम्यग्दर्शन की योग्यता नहीं ।
सैनी जीवों
हमारा कर्त्तव्य
वर्तमान में हम लोग कषाय से दग्ध हो रहे हैं जिससे तीनों बलों की रक्षा का एक भी उपाय हमारे पास नहीं है । काय की ओर दृष्टिपात करने से यह अनायास समझ में आ जाता है कि हमने कायबल की तो रक्षा की ही नहीं शेष दो बलों की भी रक्षा नहीं की ।
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शारीरिक बल का कारण माता पिता का शरीर है । हमारी जाति के रिवाज ने बालविवाह, अनमेल विवाह, वृद्ध विवाह ओर कन्या विक्रय को जन्म दिया जिससे समाज का ही नहीं बरन धर्म का भी ह्रास हुआ । यदि ये कुरीतियाँ न होतीं तो बलिष्ठ सन्तति की वह परम्परा चलती जो दूसरों के लिए आदर्श होती और जिससे वचनबल और मनोबल की श्रेष्ठता की भी रक्षा होती |
जिस समाज में इन तीनों बलों की रक्षा नहीं की जाती वह समाज जीवित रहते हुए भी मृतप्राय है । हमें आशा है कि सबका ध्यान इस ओर जायगा और वे अपनी सामाजिक, नैतिक तथा धार्मिक परम्परा को अक्षुण्ण बनाये रखने के लिए निम्न विचारों को कार्य रूप में परिणत करेंगे
१. बाल विवाह, अनमेल विवाह, वृद्ध विवाह और कन्याविक्रय या वरविक्रय जैसी घातक दुष्ट प्रथाओं का बहिष्कार करना ।
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