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वर्णी-वाणी
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ज्ञाता दृष्टा बना रहे, वह उपाय स्वाध्याय ही है । निरन्तर मूर्छा के बाह्य कारणों से अपने को रक्षित रखते हुए अपनी मनोभावना को पवित्र बनाने के लिए शास्त्र स्वाध्याय जैसे प्रमुख साधन को अवलम्बन बनाओ।
३३. शास्त्र स्वाध्याय से ज्ञान का विकास होता है और जिनके अभिप्राय विशुद्ध हैं उनके यथार्थ तत्त्वों का बोध होता है।
३४. इस काल में स्वाध्याय से ही कल्याण मार्ग की प्राप्ति सुलभ है।
३५. स्वाध्याय को तपमें ग्रहण किया है अतः स्वाध्याय केवल ज्ञान का ही उत्पादक नहीं किन्तु चारित्र का भी अङ्ग है।
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