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आत्मविश्वास १. आत्मविश्वास एक विशिष्ट गुण है। जिन मनुष्यों का आत्मा में विश्वास नहीं, वे मनुष्य धर्म के उच्चतम शिखर पर चढ़ने के अधिकारी नहीं।
२. जिस मनुष्य को आत्मविश्वास नहीं वह कभी भी महत्वपूर्ण कार्य नहीं कर सकता।
३. जो मनुष्य सिंह के बच्चे होकर भी अपने को भेड़ तुल्य तुच्छ समझते हैं, जिन्हें अपने अनन्त आत्मबल पर विश्वास नहीं, वही दुःख के पात्र होते हैं।
४. “मुझसे क्या हो सकता है ? मैं क्या कर सकता हूँ? मैं असमर्थ हूँ, दीन हीन हूँ" ऐसे कुत्सित विचारवाले मनुष्य आत्मविश्वास के अभाव में कदापि सफल नहीं हो सकते ।
५. जिस मनुष्य को आत्मविश्वास नहीं वह मनुष्य मनुष्य कहलाने का अधिकारी नहीं।
६. आत्मा के प्रदेश प्रदेश में अनन्तानन्त कार्मण वर्गणाएँ स्थित हैं अतः कर्म बन्ध की भयङ्करता और संसार परिभ्रमणरूप दुःखपरम्परा को देखकर अज्ञानी मनुष्यों का उत्साह भङ्ग हो जाता है, किसी कार्य में उनकी प्रवृत्ति नहीं होती, निरन्तर रौद्रध्यान और आतध्यान में काल व्यतीत कर
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