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वर्णी-वाणी
लेवें तब अन्त में यही निर्णय सुखकर प्रतीत होगा कि बन्धन से छूटने का मार्ग हम में ही है पर पदार्थों से केवल निजत्व हटाना है।
१६. इच्छामात्र आकुलता की जननी है, अतः वह परमानन्द का दर्शन नहीं करा सकती।
२०. कल्याण का मूल कारण मोहपरिणामों की सन्तति का अभाव है। अतः जहाँ तक बने इन रागादिक परिणामों के जाल से अपनी आत्मा को सुरक्षित रक्खो ।
२१. जगत की ओर जो दृष्टि है वह आत्मा की ओर कर दो, यही श्रेयोमार्ग है।
२२. जग से ३६ छत्तीस (सर्वथा परान्मुख) और आत्मा से ६३ (सर्वथा अनुकूल ) रहो, यही कल्याणकारक है।
२३. मन वचन और काय के साथ जो कषाय की वृत्ति है वही अनर्थ की जड़ है।
२४. सत्पथ के अनुकूल श्रद्धा ही मोक्षमार्ग की आदि जननी है। ___ २५. कल्याण की प्राप्ति आतुरता से नहीं निराकुलता से होती है।
२६. कल्याण का मार्ग अपने आपको छोड़ अन्यत्र नहीं। जब तक अन्यथा देखने की हमारी प्रकृति रहेगी, तब तक कल्याण का मार्ग मिलना अति दुर्लभ है।
२७. राग द्वेष के कारणों से बचना कल्याण का सच्चा साधन है।
२८. कल्याण का पथ निर्मल अभिप्राय है। इस आत्मा
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