________________
कल्याण का मार्ग १. जिन कार्यों के करने से संक्लेश होता है उन्हें छोड़ने का प्रयास करो, यही कल्याण का मार्ग है।
२. कल्याण का उदय केवल लिखने, पढ़ने या घर छोड़ने से नहीं होगा अपितु स्वाध्याय करने और विषयों से विरक्त रहने से होगा।
३. कल्याण के पथ में बाह्य कारणों की आवश्यकता नहीं। कालादिक जो उदासीन निमित्त हैं वे तो शुद्ध तथा अशुद्ध दोनों की प्राप्ति में समान रूप से कारण हैं, चरम शरीरादिक सब उपचार से कारण हैं। अतः मुख्यतया एकत्व परिणत आत्मा ही संसार और मोक्ष का प्रधान कारण है। ..
४. श्रद्धापूर्वक पर्याय के अनुकूल यथाशक्ति निवृत्ति मार्ग पर चलना ही कल्याण का मार्ग है।
५. कल्याण का मार्ग बाह्य त्याग से परे है और वह आत्मानुभवगम्य है।
६. कल्याण का पथ बातों से नहीं मिलता; सम्यक् निग्रह से ही मिलेगा।
७. यदि हमको स्वतन्त्रता रुचने लगी तब समझना चाहिये अब हमारा कल्याण का मार्ग दूर नहीं ।
। मिलता; कषायों के
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org