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वर्णी-वाणी
अनन्त सुख-पृ० १३, वा० ११, सुख भी दो प्रकार का है-अनन्त सुख और सान्त सुख । जो सुख पर पदार्थों के आलम्बनके बिना होता है अतः सर्व काल एक सा बना रहता है वह अनन्त सुख है और इससे भिन्न सान्त सुख है। सान्त सुख सुख नहीं सुखाभास है। आत्मनिर्मलता
गृहस्थावस्था--पृ० १५, वा० १, जो स्वावलम्बन के महत्त्व को जान कर भी कमजोरी वश जीवन में उसे पूरी तरह से उतारने में असमर्थ है, अतएव घर आदि में राग आदि कर उनका परिग्रह करता है वह गृहस्थ है । ऐसे गृहस्थकी दशा का नाम ही गृहस्थावस्था है। ____ कर्मशत्रु--पृ० १५, वा० १, कर्म आत्माकी अशुद्ध परिणति में निमित्त हैं इस लिये उन्हें कर्मशत्रु कहते हैं ।
शास्त्र-पृ० १६, वा० २, जिन ग्रन्थों द्वारा स्वातन्त्र्य प्राप्ति की शिक्षा दी जाती है और साथ ही जिनमें संसार और संसार के कारणों का निर्देश किया गया है वे शास्त्र हैं।
समवशरण-पृ० १५, वा०६, तीर्थंकरोंकी सभा । देव--पृ० १६, वा०६, योनिविशेष नारक-पृ० १६, वा०६, योनिविशेष मिथ्यात्व-पृ० १७, वा० १४, विपरीत श्रद्धा-घर, स्त्री, पुत्र, धन व शरीरादिमें अपनत्व मानना और आत्माकी स्वतन्त्र सत्ता का अनुभव नहीं करना। तिर्यंच...पृ० १७, वा० २३, गाय, हाथी, घोड़ा आदि ।
मोक्षपथ-पृ० १७, वा० २३, स्वतन्त्रताका मार्ग । मुक्ति पथ, मोक्षमार्ग व मुक्तिमार्ग इसके पर्यायवाची नाम हैं।
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