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सम्यग्दर्शन
सम्यग्दर्शन का अर्थ आत्मलब्धि है । आत्मा के स्वरूप का ठीक-ठीक बोध हो जाना आत्मलब्धि कहलाती है । आत्मलब्धि के सामने सब सुख धूल है । सम्यग्दर्शन आत्मा का महान गुण है । इसी से आचार्यों ने सबसे पहिले उपदेश दिया" सम्यग्दर्शनज्ञान चारित्राणि मोक्षमार्गः ( सम्यग्दर्शन, सम्यज्ञान और सम्यकूचारित्र मोक्ष का मार्ग है ) ।" आचार्य की करुणा बुद्धि तो देखो, मोक्ष तब हो जब कि पहले बन्ध हो । यहाँ पहले बन्ध का मार्ग बतलाना था फिर मोक्ष का, परन्तु उन्होंने मोक्षमार्ग का पहले वर्णन इसीलिये किया है कि ये प्राणी अनादि काल से बन्ध जनित दुःख का करते घबड़ा गये हैं, अतः पहले उन्हें मोक्ष का चाहिये। जैसे कोई कारागार में पड़कर दुखी होता है, वह यह नहीं जानना चाहता कि मैं कारागार मैं क्यों पड़ा ? वह तो यह जानना चाहता है कि मैं इस कारागार से कैसे छूहूँ ? यही सोचकर आचार्य ने पहले मोक्ष का मार्ग बतलाया है ।
सम्यग्दर्शन के रहने से विवेक-शक्ति सदा जागृत रहती है, वह विपत्ति में पड़ने पर भी कभी न्याय को नहीं छोड़ता । रामचन्द्र जी सीता को छुड़ाने के लिये लङ्का गये थे । लङ्का के चारों ओर उनका कटक पड़ा था । हनुमान आदि ने रामचन्द्र
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अनुभव करतेमार्ग बतलाना
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