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वर्णी-वाणी है और जब दूसरी सन्तति हो गई तब अष्टापद् ( आठ पैर वाला-मकड़ी ) संज्ञा हो गई कुटुम्ब के भरण-पोषण के लिए मकड़ी के जाल की तरह संसार जाल में फँस जाता है, न आत्मोन्नति की बात सोच सकता है, न परोन्नति की चेष्टा कर सकता है। सांसारिक जाल का कैसा विकट बन्धन है ! ___ वृद्धावस्था तो एक ऐसी अवस्था है जिसमें जीवित भी व्यक्ति मरे से गया बीता हो जाता है। हाथ पैर आदि सभी आङ्गोपाङ्ग शिथिल हो जाते हैं। तीर्थाटन की इच्छा होती है पर चला नहीं जाता,सुस्वादुभोजन करना चाहता है परन्तु दाँत भंग हो जाने से जिह्वा साथ नहीं देती, सुगन्धित फूलों को गन्ध लेना चाहता है पर घ्राणेन्द्रिय सहायता नहीं करती, उत्तम रूप सुन्दर दृश्य देखना चाहता है पर आँखों से दिखता नहीं, उल्लासक गायन वादन सुनना चाहता है परन्तु कान बहिरे हो जाते हैं इसलिए साधारण या अपने लिये आवश्यक कार्य की भी बात नहीं सुन पाता । हाथ क.पते हैं, पैर लड़खड़ाते हैं, लाठी के बल चलते हैं ! रास्ता पूछते मुँह से लार टपकती है, वचन स्पष्ट नहीं निकलते, आगे बढ़ते हैं आँखों से दिखता नहीं दीवाल से टकरा जाते है । "बाबा जी लाठी के इस हाथ चलो” रास्ता बताया जाता है, कानों से सुनाई नहीं देता, बाबा जी लाठी के उस हाथ चलते हैं; गड्ढे में गिर जाते हैं । घर कुटुम्ब ही नहीं पुरा पड़ोस के भी लोग बाबा जी के मरने की माला टारते हैं कैसा अनादर है ! ___यदि मन्दकषाय से मरण हुआ, तब देवायु के बन्ध से देवगति को प्राप्त करता है। देवगति- एक व्यक्ति जब अनेक संकट या कष्ट सहने के बाद निर्द्वन्द्व
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