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वर्णी-वणी
५. जहाँ तक बने पर पदार्थों में आत्मीय बुद्धि को त्याग देना यही उपाय संसार से मुक्त होने का है ।
६. योग और कषाय ही संसार के जनक हैं। इन की निवृन्ति ही संसार से छूटने का उपाय है।
७. जगत एक जाल है इनमें अल्पसत्त्ववालों का फँसना कोई बड़ी बात नहीं।
८. इस आत्मा के अन्तरङ्ग में अनेक प्रकार की कल्पनाएँ होती हैं और वे प्रायः संसार के कारण ही होती हैं। ____. विभावशक्ति द्वारा आत्मा में रागादि विभाव भाव होते हैं । यही संसार के मूल कारण हैं।
१०. संसार की जननी ममता है, इसे त्यागो । " ११. हम लोग जो संसार में अनेक यातनाओं के पात्र हुए उसका मूल कारण हमारी आज्ञानता है, बाह्य पदार्थों का अपराध नहीं और न मन वचन काय के व्यापारों का अपराध है। क्रोधादि कषायों की पीड़ा नहीं सही जाती इससे जीव उनका कार्य कर बैठता है । परन्तु यह विपरीत अभिप्राय ऐसा निकृष्ट परिणाम है कि अनात्मीय पदार्थों में आत्मीयता का भाव कराने में अपना विभव दिखाता है । यही संसार का मूल कारण है। ... १२. संसार परिभ्रमण का मूल कारण जीव का वह अज्ञान ही है जिसके प्रभाव से अनन्त शक्तियों का पुञ्ज आत्मा भी एक स्वांस मात्र बराबर कर काल में अठारह बार जन्म और मरण का पात्र होता है ! उस ज्ञान के नाश का उपाय अपनी परणति को कलुषित न करना ही है।
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