________________
संसार के कारण १. यह भला और वह बुरा, यही वासना बन्ध की जान है । आज तक अन्य पदार्थों में ऐसी कल्पना करते करते संसार के ही पात्र रहे । बहुत प्रयास किया तो इन बाह्य वस्तुओं को छोड़ दिया किन्तु इस से तो कोई लाभ न निकला । निकले कहाँ से, वस्तु तो वस्तु में है पर में कहाँ से आवे ? पर के त्याग से क्या ? क्योंकि वह तो स्वयं पृथक् है। उसका चतुष्टय स्वयं पृथक् है केवल विभाव दशा में अपना चतुष्टय उसके साथ तद्रूप हो रहा है । तद्रूप अवस्था का त्याग ही शुद्ध स्वचतुष्टय का उत्पादक है अतः उसकी ओर दृष्टिपात करो और लौकिकचर्या को तिलाञ्जलि दो । आजन्म से यही आलाप रहा, अब एक बार निज आलाप की तान लगा कर तानसेन हो जाओ तो सब दुःखों की सत्ता का अभाव हो जायगा।
२. "पर पदार्थ हमारा उपकार और अपकार करता है, यह धारणा ही भवपद्धति का कारण है।
३. कर्तृत्वबुद्धि का त्याग ही संसार का नाश है जब कि अहंकारबुद्धि ही संसार की जननी है।
४. जब तक हम आत्मतत्त्व को नहीं जानते संसार से विरक्त नहीं हो सकते।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org