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सत्सङ्गति ( सत्समागम ) १. सत्सङ्गति का अर्थ यही है-"निजात्मा ब्राह्य पदार्थों से भिन्न भावना के अभ्यास से कैवल्य पद पाने का पात्र हो ।” __२. जिस समागम से मोह उत्पन्न हो वह समागम अनर्थ की जड़ है।
३. ग्रहवास उतना बाधक नहीं जितना कायरों का समागम है।
४. आवश्यकता इस बात की है कि निरन्तर निष्कपट पुरुषों की सङ्गति करो । ऐसे समागम से अपने को रक्षित रखो जो स्वार्थ के प्रमो हैं, कुपथगामी हैं।
५. प्रत्येक उदासीन व्यक्ति को सत्समागम में रहना चाहिये । सत्समागम से यह अर्थ लेना चाहिये कि जो मनुष्य संसार से विरक्त हो शेष आयु मोक्षमार्ग में विताना चाहते हों, उन्हें चाहे ज्ञान अल्प भी हो पर भीतर से निष्कपट हों उन्हीं का समागम करें।
६. साधु समागम मोक्षमार्ग में बाह्य निमित्त है।
७. वर्तमान में निष्कपट समागम का मिलना परम दुर्लभ है । अतः सर्वोत्तम समागम तो अपनी रागादि परणति को घटाना ही है।
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