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________________ १४५ - ब्रह्मचर्य छोटा कन्या बड़ी, या कन्या छोटी वर बड़ा) जैसे सामाजिक और वैयक्तिक पतन के कारणों से भी है। मेरी समझ में इन घृणित दुराचारों को रोकने का सर्व श्रेष्ठ उपाय यही है कि माता पिता अपने बच्चों को सबसे पहिले सदाचार के संस्कार से ही विभूषित करने को प्रतिज्ञा करें । सदाचार एक ऐसा आभूषण है जो न कभी मैला हो सकता है न कभी खो सकता है, व्यक्ति के साथ छाया की तरह सदा साथ रहता है। बालक ही वे युवक होते हैं जो एक दिन पिता का भार ग्रहण कर कुटुम्ब में धर्म परम्परा चलाते है, बालक ही वे नेता होते है जो समाज का नेतृत्व कर उसे नवीन जीवन और जागृति प्रदान करते हैं, यहां तक कि बालक ही वे महर्षि होते हैं जो जनता को कल्याण पथका प्रदर्शन कर शान्ति और सच्चा सुख प्राप्त कराने में सहायक बनते हैं। १०. गृहस्थों के संयम में सबसे पहिले इन्द्रिय संयम को कहा है। उसका कारण यही है कि ये इन्द्रियां इतनी प्रबल हैं कि बे आत्मा को हटात् विषय की ओर ले जाती है, मनुष्य के ज्ञानादि गुणों को तिरोहित कर देती हैं, स्वीय विषय के साधन निमित्त मन को सहकारी बनाती हैं, मन को स्वामी के वदले दास बना लेती हैं ! इन्द्रियों की यह सबलता आत्म कल्याण में बाधक हैं अतः उनका निग्रह अत्यावश्यक है। उपाय यह है कि सर्व प्रथम इन्द्रियों की प्रवृत्ति ही उस ओर न होने दो परन्तु यदि जव कोई इन्द्रिय का समभिधान हो रहा है, कोई प्रतिबन्धक कारण विषय निवारक नहीं है, और आप उसके ग्रहण करने के लिये तत्पर हो गये हैं तो उसी समय आपका कार्य है कि इन्द्रिय को विषय से हटाओ उसे यह Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003997
Book TitleVarni Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1950
Total Pages380
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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