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________________ भक्ति है वही बन्धन से मुक्त करनेवाला होता है । जो भी कार्य करो उसमें कर्तृत्वबुद्धि को त्यागो । ८९ १३. प्रातः उठकर भगवद्भक्ति करो । चित्त में शान्ति श्रना ही भगवद् भक्ति का फल है । यदि शान्ति का उदद्य न हुआ तब केवल पाठ से कोई लाभ नहीं । १४. अनुराग पूर्वक परमात्मा का स्मरण भी बन्ध का कारण है अतः य है । मूल तत्त्व तो आत्मा ही है । जबतक अनात्मीय औदयिकादि भावों का आदर करोगे तक तक संसार ही के पात्र बने रहोगे । १५. " पारस ( पार्श्व पत्थर ) के स्पर्श से लोहा सुवर्ण ( सोना ) हो जाता है ।" इस लोकोक्ति पर विश्वास रखनेवाले जो लोग पार्श्व प्रभु के चरण स्पर्श से केवल सुवर्ण ( सु + वर्ण = सत्कुलीन सदाचारी ) होना चाहते हैं वे सन्मार्ग से दूर हैं। पार्श्वप्रभु के तो स्मरणमात्र में वह शक्ति है कि उनके चरण स्पर्श बिना ही लोग स्वयं पार्श्व बन जाते हैं । Jain Education International 2002 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003997
Book TitleVarni Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1950
Total Pages380
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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