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उद्योग १. जिस कार्य को मनुष्य करना चाहे वह हो सकता है परन्तु उसके कारणों के जोड़ने में अहर्निश प्रयत्न करना पड़ेगा । जबतक उद्योग नहीं, कार्य की सिद्धि असम्भव है।
२. प्रयास करना तब तक न छोड़ो जब तक अभीष्ट सिद्ध न हो जाय ।
३. केवल कल्पना द्वारा उत्कर्षशील बनने की आशा छोड़ो, पुरुषार्थ करो तो जीवन में नवमङ्गल प्रभात अवश्य होगा।
४. नियमपूर्वक उद्योग से अल्पज्ञ भी ज्ञानी हो जाता है और अनियमित उद्योग से बहुज्ञानी भी अल्पज्ञ हो जाता है।
५. केवल मनोरथ करना कायरों का कर्तव्य है। कार्य सिद्धि के लिये मन, वचन और काय से प्रयत्नशील होना शूरवीरों का कर्तव्य है।
६. जो संकल्प करो उसे पूर्ण करने की चेष्टा करो। चेष्टा नाम प्रयत्न या उद्योग का है । प्रयत्न के बिना मनुष्य परसा हुआ भोजन भी नहीं कर सकता, तब अन्य कार्यों की सिद्धि तो दुस्कर है ही।
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