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________________ (३८) भक्तिरमातैं नमें 'दौल' को चिर विभाव दुख टारन है ॥ ७ ॥ जिनदेव-दर्शन-पूजन महाकवि बुधजन (पद १०९-१११) (१०९) श्री जिन पूजन को हम आये, पूजत ही दुख दुंद मिटाये ॥ टेक ॥ विकलप गयो प्रगट भयो धीरज अद्भुतसुख समता बरसाये ॥ आधि'व्याधि' अब दीखत नांही, घर में कलपतरु आंगन थाये ॥ १ ॥ इतमैं चन्द्र चक्रवर्ति इतमैं, इतमैं फनिदं खरे सिर नाये । मुनिजन बूंद करैं थुर्ति' हरखत, धनि हम जनमैं पद परसाये ॥ २ ॥ परमौदारिक मैं परमातम, ज्ञान मई हमको दरसाये । ऐसे ही हममें हम जानै, बुधजन गुन मुख जात न गाये || ३ || (११०) मेरो मनवा अति हरखाय, तोरे दरसन सौं ॥ मेरो ॥ टेक ॥ शांत छबी लखि शांत भाव है आकुलता मिट जाय, तोरे दरसन ॥ मेरो. जबलौं चरन निकट नहिं आया, तब आकुलता था । अब आवत ही निज निधि पाया ॥ मेरो ॥ २ ॥ बुधजन अरज करै कर जोरे, सुनिये श्री जिनराय, जबलौं मोख होय नहिं तबलौं भक्ति करूं गुन गाय, तोरे दरसन सौं ||मेरो ॥ ३॥ (१११) छिन न विसारां ́ चितसौं, अजी हो प्रभुजी थानै छिन । वीतराग छबि निरखत नयना, हरख भयो सो उर' ही जानै ॥ १ ॥ तुम मत खारक" दाखचाखिकैं" आन निवौरी क्यों मुख आनै । अवतो सरनैं राखि रावरी' २ कर्मदुष्ट दुख दे१३ छै म्हाने १४ ॥ २ ॥ वम्यौ१५ मिथ्यामत अम्रत चाख्यो, तुम भाख्यो " धर्यो मुझ कानै । निशिदिन थांको दर्श मिलौ, मुझ बुधजन ऐसी ऐसी अरज वखानै ॥ ३ ॥ १. मानसिक व्यथा २.पीड़ा ३. हो गये ४. खड़े ५ स्तुति ६. हो गया ७. प्रार्थना ८. भुलाऊं ९. हृदय १०. छुहारा ११. किशमिश १२. आपकी १३.देते हैं १४. मुझे १५. उगलना १६. कहा । Jain Education International 11 8 11 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003995
Book TitleAdhyatma Pad Parijat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchedilal Jain, Tarachand Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1996
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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